दरअसल, समीर के पिता जरीफ बीएएमएस डाक्टर थे और शामली में अपना क्लीनिक चलाते थे. उन की चाहत थी कि समीर बड़ा हो कर डाक्टर बने. इसीलिए उन्होंने डाक्टरी की कोचिंग के लिए उसे कोटा भेज दिया था. उन के रिश्तेदार का बेटा भी समीर के साथ ही एमबीबीएस की तैयारी कर रहा था.
काव्या से शुरू हुई समीर की दोस्ती गुजरते वक्त के साथ प्यार में बदल गई थी. काव्या के प्रति समीर की चाहत का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता था कि एक दिन उस ने अपने हाथ पर उस का नाम भी गुदवा लिया. काव्या को यह तो पता था कि समीर उस पर मरता है लेकिन उसे ये नहीं मालूम था कि उस की दीवानगी में वह उस का नाम अपने हाथ पर भी गुदवा लेगा.
इधर इंटरमीडिएट के बाद दोनों चोरीछिपे पढ़ाई के बहाने कभी घर में तो कभी घर के बाहर मिलतेजुलते थे. धीरेधीरे यह बात राकेश के कानों तक जा पहुंची. राकेश की पत्नी कृष्णा के संबध भी अपने पति से ठीक नहीं थे.
दरअसल, तेजतर्रार और चंचल स्वभाव वाली कृष्णा के चरित्र पर राकेश को पहले से ही शक था. राकेश को भनक थी कि कृष्णा उस के ड्यूटी जाने के बाद घर से बाहर अपने चाहने वालों से मिलती रहती है. राकेश को तो इस बात का भी शक था कि कृष्णा के चाहने वाले उस से मिलने के लिए घर में भी आते हैं.
यही कारण था कि अकसर राकेश और कृष्णा के बीच झगड़ा होता रहता था. अपनी इसी झल्लाहट में राकेश कृष्णा पर अकसर हाथ भी छोड़ देता था. जब राकेश शराब पी लेता तो वह कृष्णा को न सिर्फ गालियां देता, बल्कि मारपीट करने के दौरान यहां तक तंज कस देता कि उसे शक है कि उस की तीनों औलाद असल में उस की हैं या किसी और की.