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वेदराम बेहद सीधासादा और मेहनती युवक था. वह उत्तर प्रदेश के जिला फिरोजाबाद के एक चूड़ी कारखाने में काम करता था, जबकि उस के बीवीबच्चे कासगंज जिले के नगला लालजीतगंज में रहते थे. यह वेदराम का पैतृक गांव था. वहीं पर उस का भाई मिट्ठूलाल भी परिवार के साथ रहता था.

जिला कासगंज के ही थाना सहावर का एक गांव है बीनपुर कलां. यहीं के रहने वाले आलम सिंह का बेटा नेकसे अकसर नगला लालजीतगंज में अपनी बुआ के घर आताजाता रहता था. उस की बुआ की शादी वेदराम के भाई मिट्ठूलाल के साथ हुई थी.

वेदराम की पत्नी सुनीता पति की गैरमौजूदगी में भी घर की जिम्मेदारी  ठीकठाक निभा रही थी. वह अपनी बड़ी बेटी की शादी कर चुकी थी. जिंदगी ने कब करवट ले ली, वेदराम को पता ही नहीं चला. पिछले कुछ समय से वेदराम जब भी छुट्टी पर घर जाता था, उसे पत्नी सुनीता के मिजाज में बदलाव देखने को मिलता था. उसे अकसर अपने घर में नेकसे भी बैठा मिलता था.

नेकसे हालांकि उस के भाई मिट्ठूलाल की पत्नी का भतीजा था, फिर भी वह यही सोचता था कि आखिर यह उस के घर में क्यों डेरा डाले रहता है. उस ने एकदो बार नेकसे को टोका भी कि बुआ के घर पड़े रहने से अच्छा है वह कोई कामकाज देखे. सुनीता ने भी नेकसे पर कोई ज्यादा ध्यान नहीं दिया था, लेकिन वह जब भी आता था, वह उस की खूब मेहमाननवाजी करती थी. नेकसे के मन में क्या था, यह सुनीता को पता नहीं था. एक दिन नेकसे दोपहर में उस के घर आया और चारपाई पर बैठ कर इधरउधर की बातें करने लगा. अचानक वह उस के पास आ कर बोला, ‘‘बुआ, तुम जानती हो कि तुम कितनी सुंदर हो?’’

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