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जिला सीतापुर के मिश्रिख थाना कोतवाली के अंतर्गत आने वाले गांव बदौव्वा में लालजी रहते थे. वह खेती करते थे. परिवार में उन की पत्नी रमा और 2 बेटी और 2 बेटे थे. उन सब में शशि सब से छोटी भी थी और अविवाहित भी. बाकी सभी का विवाह हो चुका था. शशि की उम्र 16 साल थी. उस ने गांव के ही सरकारी स्कूल से 8वीं कक्षा तक पढ़ाई की थी. खूबसूरत, चंचल और अल्हड़ स्वभाव की शशि के शरीर की बनावट और कमनीयता किसी की भी नजरों में चढ़ जाती थी. गांव में सुंदर युवती हो और उस के आगेपीछे मंडराने वाले मनचले न हों, यह नहीं हो सकता.

शशि के आगेपीछे घूमने वाले मनचलों की कमी नहीं थी. शशि को उन की घूरती नजरों से कोई दिक्कत नहीं थी, बल्कि उसे यह सब अच्छा लगता था. धीरेधीरे कई युवक उस के संपर्क में आए, लेकिन कोई भी शशि को प्रभावित नहीं कर पाया.

एक दिन गांव में काफी चहलपहल थी, क्योंकि वहां एक बड़े यज्ञ का आयोजन किया गया था. चूंकि धार्मिक अनुष्ठान था, इसलिए गांव वाले काफी उल्लास में थे और यज्ञस्थल पर जाने के लिए उत्साहित भी. यज्ञ में शामिल होने वालों में सभी समुदायों के लोग थे.

शशि भी यज्ञस्थल पर जाने के लिए तैयार थी. वह अपनी सहेली मीना के घर पहुंची और चहकती हुई बोली, ‘‘मीना, तुम भी चलो न मेरे साथ यज्ञ देखने.’’

‘‘हां शशि, मैं ने भी सुना है यज्ञ के बारे में. मेरा भी मन यज्ञ देखने का हो रहा है.’’ मीना ने कहा.

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