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लाश बन कर मिला मासूम बेटा कार्तिक

बैरागढ़ थाने के टीआई सुधीर अरजरिया गुमशुदगी की रिपोर्ट पर कोई काररवाई कर पाते, उस के पहले ही उन के पास एक फोन आया. थाने से करीब 17 किलोमीटर दूर मुबारकपुर इलाके के टोल नाके के कर्मचारियों ने उन्हें फोन कर के बताया कि वहां संदिग्ध हालत में एक बोरी पड़ी है. बोरी के बारे में जो बताया गया था, उस से लग रहा था कि उस में किसी बच्चे की लाश है. मुबारकपुर, परवलिया थाना इलाके में आता है.

चूंकि परसराम ने कार्तिक के स्कूल से लापता होने की रिपोर्ट लिखाई थी, इसलिए पुलिस वालों को शक हुआ कि कहीं कार्तिक के साथ कोई हादसा न हो गया हो. पुलिस ने परसराम को फोन कर के तुरंत थाने बुलाया और जीप में बैठा कर मुबारकपुर की तरफ रवाना हो गए.

13 किलोमीटर का यह सफर परसराम के लिए 13 साल जैसा गुजरा. मन में आशंकाएं आजा रही थीं कि कार्तिक के साथ कहीं कोई अनहोनी न हुई हो.

मुबारकपुर पहुंच कर जब उन के सामने बोरी खोली गई तो परसराम की सांसें रुक सी गईं. बोरे में उन के मासूम बेटे कार्तिक की ही लाश थी. लाश स्कूल यूनिफार्म में ही थी और गले में आईकार्ड भी लटक रहा था. आईकार्ड में दर्ज पता देख कर ही परवलिया पुलिस ने बैरागढ़ थाने को इत्तला दी थी.

कार्तिक का कत्ल हुआ है, यह जान कर पूरे बैरागढ़ में हाहाकार मच गया. धीरेधीरे लोग बैरागढ़ थाने पहुंचने लगे. हर किसी की जुबान पर स्कूल प्रबंधन की लापरवाही की बात थी. थाने में कविता और परसराम का रोरो कर बुरा हाल था. ऐसे में उन से ज्यादा सवाल पूछा जाना मुनासिब नहीं था, लेकिन बढ़ती भीड़ और उस के गुस्से को देख कर जरूरी हो चला था कि मासूम के कत्ल की गुत्थी जल्द से जल्द सुलझे.

जब पतिपत्नी थोडे़ सामान्य हुए तो पुलिस ने उन से पूछा कि क्या उन्हें किसी पर शक है? इस पर कविता एकदम फट पड़ी और सीधे अपने पड़ोस में रहने वाले विशाल रूपानी उर्फ बिट्टू पर शक जता दिया.

कविता के बताए अनुसार, विशाल उस के दोनों बच्चों को घर पर ट्यूशन पढ़ाने के लिए आता था. धीरेधीरे कविता पर उस की नीयत खराब हो गई और वह उस के साथ गलत हरकतें करने लगा. यह बात जब परसराम को पता चली तो उस ने विशाल का घर आना बंद कर दिया. हादसे के 2 दिन पहले ही परसराम और उस का भाई दिलीप विशाल को ले कर थाने आए थे, जहां सुलह हो जाने पर मामला रफादफा हो गया था.

वजह कुछ और ही थी कार्तिक की हत्या की

पुलिस के सामने अब सारी कहानी आइने की तरह साफ थी, लेकिन हालात ऐसे नहीं थे कि कविता से विस्तार से पूछताछ की जाती. दूसरे दिन सुबह को गुस्साए लोगों ने स्कूल का घेराव किया. लेकिन भीड़ को किसी तरह समझाबुझा कर शांत कर दिया गया. पुलिस वालों ने बेहतर यही समझा कि पहले कार्तिक का अंतिम संस्कार हो जाए, उस के बाद छानबीन की जाए. एक तरह से यह साबित हो गया था कि हत्यारा विशाल ही है. पुलिस ने उसे हादसे की रात ही गिरफ्तार कर लिया था.

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इधर सुबह व्हाट्सऐप पर एक मैसेज वायरल हुआ तो हकीकत से अंजान भीड़ का गुस्सा स्कूल पर उतरने लगा. 9 जनवरी की सुबह भीड़ ने क्राइस्ट मेमोरियल स्कूल को घेर कर प्रदर्शन किया. स्कूल के सामने प्रदर्शन कर रहे लोग इस बात का जवाब चाहते थे कि कार्तिक के मामले में लापरवाही क्यों बरती गई. इसी दौरान परसराम की कहासुनी प्रिंसिपल डाक्टर मैनिज मैथ्यूज से भी हुई.

परसराम का आरोप था कि स्कूल प्रबंधन की लापरवाही के चलते ही कार्तिक का अपहरण हुआ. आरोप गलत नहीं था, लेकिन तब तक सच का कुछ हिस्सा भी वायरल होने लगा था. कार्तिक के पोस्टमार्टम और अंतिम संस्कार के बाद पुलिस ने पूरी छानबीन के बाद जो बताया वह इस लिहाज से चौंका देने वाला था कि कविता और विशाल के नाजायज संबंध थे.

दरअसल, विशाल बच्चों को पढ़ातेपढ़ाते खुद कविता से किसी और विषय की ट्यूशन लेने लगा था. यह विषय था एक नवयुवक और गृहिणी के बीच का दैहिक आकर्षण जो अकसर ऐसे हादसों की वजह बनता है.

विशाल और परसराम के परिवारों के बीच काफी घनिष्ठ संबंध थे. साल 1997 के आसपास विशाल की मां अपने पति को छोड़ कर पिता के पास आ कर रहने लगी थी. तब विशाल पेट में था. परसराम का घर पड़ोस में था और दोनों परिवारों के बीच संबंध घर जैसे थे. विशाल की मां का अपने पति से इतना गहरा विवाद था कि वह दोबारा कभी पति के पास नहीं गई. वह पिता के पास ही रही और गुजारे के लिए ट्यूशन पढ़ाने लगी थी. तब परसराम खुद एक स्कूली छात्र हुआ करता था.

गहरे और पुराने रिश्ते थे परसराम और विशाल के परिवार के

विशाल बड़ा हुआ और स्कूल होते हुए बैरागढ़ के ही साधु वासवानी कालेज में पढ़ने लगा. नौकरी के नाम पर वह बैरागढ़ के ही कृष्णा कौंप्लेक्स की एक दुकान में नौकरी करने लगा था. इधर कनक और कार्तिक को पढ़ाने के लिए परसराम ने उसे बतौर ट्यूटर रख लिया, क्योंकि एक तरह से वह घर के सदस्य जैसा था.

पहले तो परसराम के घर उस का कभीकभार ही आनाजाना होता था, लेकिन जब वह बच्चों को ट्यूशन पढ़ाने आने लगा तो रोजरोज उस का सामना कविता से होने लगा. 2 बच्चों की मां बनने के बाद भी कविता का यौवन ढला नहीं था. विशाल रोजाना अपनी पड़ोसन भाभी को देखता तो उस के मन में कुछकुछ होने लगा.

यह प्यार था या शारीरिक आकर्षण, यह तय कर पाना मुश्किल है. 19 साल की उम्र आजकल के लिहाज से ज्यादा नहीं तो कम भी नहीं होती. विशाल की चाहत कविता के प्रति बढ़ने लगी. जब भी वह कनक और कार्तिक को पढ़ाने के दौरान भाभी को देखता था तो उस के नाजुक अंग देख कर रोमांचित और उत्तेजित हो जाता था.

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