साधारण परिवार से ताल्लुक रखने वाला राजा नामक नौजवान दिल्ली से लगे नोएडा के एक कार गैराज में नौकरी करता था. उसे घायल हालत में अस्पताल में भरती कराया गया. 3 दिन जिंदगी और मौत से जूझने के बाद राजा की सांसों की डोर हमेशा के लिए टूट गई. वह मारपीट में बुरी तरह से घायल हुआ था. उस के सिर व बदन के दूसरे हिस्सों पर चोटों के निशान थे.
उस की मौत ने न सिर्फ उस के परिवार, बल्कि उस के जानकारों को भी हिला कर रख दिया. राजा की गलती महज इतनी थी कि वह अपनी बहन के साथ आएदिन होने वाली छेड़छाड़ का विरोध करता था. किसी ने सोचा भी नहीं था कि विरोध करने पर मनचला अपने साथियों के साथ उसे इस तरह निशाना बना लेगा.
एक भाई के लिए यह जरूरी भी हो जाता है कि जब कोई सिरफिरा शोहदा उस की बहन को छेड़े, तो वह विरोध करे, लेकिन मनचलों के हौसले बुलंद होते हैं. उन्हें लगता है कि ऐसे विरोध से उन की तौहीन हो गई है और वे सीनाजोरी कर के मरनेमारने पर उतारू हो जाते हैं.
दरअसल, राजा की बहन को एक शोहदा वसीम अकसर ही परेशान किया करता था. मौका लगने पर छेड़छाड़ और फब्तियां कसता था. राजा ने इस बात का कई बार विरोध किया, लेकिन उस की हरकतें बंद नहीं हुईं.
एक दिन वसीम ने अपने साथियों के साथ मिल कर राजा की जम कर पिटाई कर दी. गंभीर चोटों के बाद उस की मौत हो गई.
पुलिस ने आरोपियों को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया. कानून ने अपना काम किया, लेकिन बात सिर्फ इतने पर खत्म नहीं हो जाती. सवाल है कि किसी सभ्य समाज में क्या एक भाई को यह सब सहना चाहिए?