कहावत है कि अविवेक हमेशा अनर्थ की ओर ले जाता है. प्रतीक्षा व संग्राम सिंह की घनिष्ठता और यशवंत सिंह के पीछे उस के घर आनेजाने को ले कर यशवंत सिंह की मां कमला के मन में संदेह के बीज उगने लगे. कमला ने इस की शिकायत बेटे से की.
पहले तो यशवंत सिंह ने इस ओर ध्यान नहीं दिया परंतु जब मोहल्ले के लोग संग्राम और प्रतीक्षा के अवैध रिश्तों की चर्चा करने लगे तो यशवंत सिंह ने इस बाबत प्रतीक्षा से जवाब तलब किया.
लेकिन वह साफ मुकर गई, ‘‘संग्राम से मैं हंसबोल क्या लेती हूं, मोहल्ले वालों ने उसे मेरी बदचलनी समझ लिया. हम से जलने वाले फिजूल की बातें फैला रहे हैं. रही बात मांजी की तो वह सुनीसुनाई बातों पर विश्वास कर लेती हैं.’’
यशवंत सिंह प्रतीक्षा पर जरूरत से ज्यादा विश्वास करता था, सो उस ने बात बढ़ाना उचित नहीं समझा और मान लिया कि प्रतीक्षा बदचलन नहीं है. पर मां की बात और मोहल्ले में फैली अफवाह को वह सिरे से नहीं नकार सकता था. शक के आधार पर उस ने संग्राम सिंह को सख्ती से मना कर दिया कि वह उस की गैरहाजिरी में उस के घर न आया करे.
प्रेम के पंछी जब मिलने को आतुर हों तो वे जमाने की परवाह नहीं करते. मना करने के बाद भी प्रतीक्षा और संग्राम सिंह चोरीछिपे मिलते रहे. जिस दिन मौका मिलता, प्रतीक्षा फोन कर संग्राम सिंह को बुला लेती थी. लेकिन बेहद सतर्कता के बावजूद एक दिन प्रतीक्षा और संग्राम सिंह रंगेहाथ पकड़े गए.
हुआ यह कि उस दिन यशवंत सिंह खाद की बोरी लेने हुसैनगंज बाजार जाने को कह कर घर से निकला. साइकिल से आधा सफर तय करने के बाद उसे याद आया कि वह किसान बही तो लाया ही नहीं. जिस में खाद की मात्रा और रुपयों की एंट्री होनी थी. इस भूल के चलते वह वापस घर जा पहुंचा.