एक सप्ताह बीत गया. सुकृति और मां की हालत खराब होने लगी. कोई निर्णय नहीं कर पा रहा था कि पुलिस को सूचना दी जाए या नहीं. धीरेधीरे 10 दिन बीत गए. कहीं से कोई सूचना नहीं मिली. सुकृति से पता चला कि मनु अपना क्रेडिट कार्ड साथ ले कर नहीं गया. भैया ने बैंक से पता किया तो पता चला कि जाने से एक दिन पहले मनु ने अपने एकाउंट से 20 लाख रुपए निकाले थे. इस बात ने सभी को और परेशान कर दिया.
15 दिन बीत गए. मनु का कुछ पता नहीं चल रहा था. अंत में भैया सुकृति को ले कर पुलिस स्टेशन गए. पुलिस ने गुमशुदगी लिखने से मना कर दिया. पुलिस वालों का तर्क था कि बालिग और स्वस्थ लड़का अगर अपनी इच्छा से घर से चला जाता है तो कोई अपराध नहीं होता.
मनु को गए पूरे 17 दिन हो गए थे. 17वें दिन अचानक सुबह बड़े भैया सुरेंद्र के मोबाइल पर अंजान नंबर से फोन आया. फोन करने वाले ने उसे एक नंबर दे कर कहा कि वह फौरन उस नंबर पर बात करे. भैया का माथा ठनका. किसी अनिष्ट की आशंका से शरीर सिहर उठा. उस ने वह नंबर मिलाया तो दूसरी ओर से किसी महिला का स्वर उभरा, ‘‘हैलो मि. सुरेंद्र, आप घर वालों से थोड़ा अलग हट कर बात करें.’’
घबराया सुरेंद्र कोठी के बाहर लौन में आ गया. महिला ने सिसकते हुए पूछा, ‘‘आप का छोटा भाई मनु कहां है?’’
सुरेंद्र को काटो तो खून नहीं. उस ने कहा, ‘‘बिजनैस के सिलसिले में बाहर गया है.’’