मेनगेट का ताला खुला देख कर राधा समझ गई कि मनीष आ गया है, क्योंकि घर की चाबियां मनीष के पास भी होती थीं. उतने बड़े घर में मांबेटा ही रहते थे, इसलिए दोनों अलगअलग चाबियां रखते थे कि किस को कब जरूरत पड़ जाए.
राधा ने अंदर आ कर बाजार से लाया सामान किचन में रखा और हाथमुंह धोने के लिए बाथरूम की ओर बढ़ी. वह मनीष के कमरे के सामने से गुजरी तो अंदर से मनीष के साथ लड़की के हंसने की आवाज उसे सुनाई दी. उस के कदम वहीं रुक गए और माथे पर बल पड़ गए.
वह होंठों ही होंठों में बड़बड़ाई, ‘‘मनीष आज फिर नेहा को ले आया है. इस का मतलब यह हुआ कि वह मानने वाला नहीं है.’’
बेटे की इस मनमानी से नाराज राधा उस के कमरे में घुस गई. अंदर उस ने जो देखा, उस से एक बार उसे पलट कर बाहर आना पड़ा. अंदर पड़े बैड पर नेहा अपनी दोनों बांहें मनीष के गले में डाले गोद में बैठी थी.
राधा को देख कर दोनों भले ही अलग हो गए थे, लेकिन उन के चेहरों पर शरम की परछाई तक नहीं थी. वे कमरे से बाहर आए तो राधा ने कहा, ‘‘तू आज फिर इस लड़की को घर ले आया. मैं ने कहा था न कि मुझे यह लड़की बिलकुल पसंद नहीं है, इसलिए इसे घर मत ले आना.’’
‘‘मम्मी, नेहा आप को भले नहीं पसंद, पर मुझे तो पसंद है. आप तो जानती हैं कि मैं इसे बहुत प्यार करता हूं, इसलिए शादी भी इसी से करूंगा.’’ मनीष ने राधा के नजदीक जा कर कहा.