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साधना सिंह बहुत बदहवास नजर आ रही थी. 3 बार उस ने अपने बैडरूम में रखी अलमारी का लौकर और ड्राअर का सामान उलटपलट कर के अच्छे से चैक कर डाला था. रात को ही उस ने 10 हजार रुपए अलमारी में रखे थे, वे गायब थे.

‘कहां गए 10 हजार रुपए?’ वह बड़बड़ाई, ‘सारा दिन तो वह घर में ही थी, कोई आयागया भी नहीं. फिर रुपए कहां चले गए? कहीं दक्ष ने वे रुपए चुरा कर पबजी गेम में तो नहीं उड़ा दिए?’

‘यकीनन रुपए दक्ष ने ही चुराए हैं.’ साधना सिंह के मन में दृढ़ विचार कौंधा.

गुस्से में तनी साधना सिंह बेटे दक्ष को ढूंढती हुई उस के स्टडी रूम आई तो वहां दक्ष कुरसी पर बैठा दिखाई दे गया. उस के सामने की टेबल पर एक किताब उलटी पड़ी थी. दक्ष के हाथ में मोबाइल फोन था, उस का पूरा ध्यान मोबाइल की स्क्रीन पर था.

साधना सिंह के तनबदन में आग लग गई. गुस्से में तो वह पहले ही थी. उस ने दक्ष के हाथ से मोबाइल छीन कर टेबल पर पटक दिया और दक्ष को बालों से पकड़ कर चीखी, ‘‘ठहर, मैं खिलवाती हूं तुझे पबजी गेम.’’

साधना सिंह बेरहमी से उसे पीटने लगी. दक्ष रोने लगा, रोते हुए ही बोला, ‘‘मैं गेम नहीं खेल रहा था मौम, मैं औनलाइन पढ़ाई कर रहा था.’’

‘‘झूठ बोलता है नालायक,’’ साधना सिंह उस के गाल पर जोर से थप्पड़ मारते हुए चीखी, ‘‘मेरी अलमारी से 10 हजार रुपए गायब हैं. बता वे रुपए तूने क्या किए हैं?’’

‘‘मैं ने आप के रुपए नहीं लिए हैं मौम, डैड की कसम ले लो...’’

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