लवली से शादी करते समय सुरेंद्र ने शायद यह नहीं सोचा था कि जो औरत एक बार पति और बच्चों को छोड़ सकती है, वह दोबारा भी यही कर सकती है. पढ़ाई पूरी कर के रोजीरोटी की तलाश में डा. बिस्वास अपने एक दोस्त की मदद से पश्चिम बंगाल से उत्तर प्रदेश के जिला बरेली आ गया था. यहां वह किसी गांव में क्लिनिक खोल कर प्रैक्टिस करना चाहता था. अपने साथ वह पत्नी और बच्चों को भी ले आया था. डा. बिस्वास का वह दोस्त बरेली के कस्बा मीरगंज मे अपनी क्लिनिक चला रहा था. उसी की मदद से डा. बिस्वास ने मीरगंज से यही कोई 5 किलोमीटर दूर स्थित गांव हुरहुरी में अपना क्लीनिक खोल लिया था.
View this post on Instagram
गांव हुरहुरी में न कोई क्लिनिक थी न कोई डाक्टर. इसलिए बीमार होने पर गांव वालों को इलाज के लिए 5 किलोमीटर दूर भी दोरगंज जाना पड़ता था. इसलिए डा. बिस्वास ने हुरहुरी में अपना क्लिनिक खोला तो गांव वालों ने उस का स्वागत ही नहीं किया, बल्कि क्लीनिक खोलने में उस की हर तरह से मदद भी की. डा. बिस्वास को बवासीर, भगंदर जैसी बीमारियों को ठीक करने में महारत हासिल थी. इसी के साथ वह छोटीमोटी बीमारियों का भी इलाज करता था. सम्मानित पेशे से जुड़ा होने की वजह से गांव वाले उस का बहुत सम्मान करते थे.
इस की एक वजह यह भी थी कि उस ने गांव वालों को एक बड़ी चिंता से मुक्त कर दिया था. गांव वाले किसी भी समय उस के यहां आ कर दवा ले सकते थे. गांव में जाटों की बाहुल्यता थी. धीरेधीरे डा. बिस्वास गांव वालों के बीच इस तरह घुलमिल गया, जैसे वह इसी गांव का रहने वाला हो. गांव वालों ने भी उसे इस तरह अपना लिया था, जैसे वह उन्हीं के गांव में पैदा हो कर पलाबढ़ा हो. डा. बिस्वास की पत्नी लवली घर के कामकाज निपटा कर उस की मदद के लिए क्लिनिक में आ जाती थी. वह एक नर्स की तरह क्लिनिक में काम करती थी. क्लिनिक में आने वाला हर कोई उसे भाभी कहता था. इस तरह जल्दी ही वह पूरे गांव की भाभी बन गई. वह काफी विनम्र थी, इसलिए गांव के लोग उस से काफी प्रभावित थे.