सुबह पौने 7 बजे रविरतन वर्मा सो कर उठा तो उस का सिर भारी था और शरीर भी बेजान, ढीलाढाला लग रहा था. पूरी रात वह घोड़े बेच कर सोया था. रवि को हैरानी थी कि वह बीती रात एक बार भी न पानी पीने उठा था, न बाथरूम जाने के लिए, जबकि रात में एकाध बार वह जरूर उठ जाता था. फ्रैश होने से पहले उसे एक प्याला चाय चाहिए होती थी.
उस ने सिर घुमा कर पास में सोई पत्नी मोनिका वर्मा की ओर देखा, वह गहरी नींद में थी. दोनों के बीच में पलंग पर उन का बेटा भी सो रहा था. रवि रतन ने हाथ से झकझोर कर मोनिका को हिलाया, ‘‘मोनिका उठो, मुझे चाय की तलब लगी है.’’
मोनिका वर्मा कसमसाई. फिर उस ने आंखें खोल दीं. बिस्तर से नीचे उतर कर उस ने अपनी साड़ी ठीक की और दरवाजे की तरफ बढ़ गई. उस की नजर स्टोर रूम के दरवाजे पर चली गई. वह खुला हुआ था और उस के अंदर सामान बिखरा हुआ था.
“यह... यह स्टोर रूम किस ने खोला है?’’ वह चौंक कर बड़बड़ाई और तेजी से बाहर आ कर स्टोर रूम की तरफ बढ़ गई. स्टोर रूम में सामान बिखरा हुआ था और अलमारी खुली हुई थी. उस में रखा कीमती सामान गायब था.
“ऐजी सुनते हो,’’ मोनिका ने जोर से अपने पति को आवाज लगाई, ‘‘घर में चोरी हुई है.’’
रविरतन सुन कर दौड़ता हुआ कमरे से स्टोर रूम में आ गया. बिखरा सामान देख कर उस को यह आभास हो गया कि घर में रात को चोर घुस आए थे, यदि वह ऊपर स्टोर रूम तक आए थे तो अवश्य ही नीचे भी उन्होंने हाथ साफ किया होगा. यह विचार मन में आते ही रवि सीढिय़ों की ओर झपटा. उस के पीछे मोनिका भी दौड़ी.