मां की बातों से विकास हो गया भावुक
यह कहती हुई क्षमा ने विकास को गले से लगा लिया था. बिलखती हुई बोलने लगी, ‘‘बेटा, अब मैं किसी भी कीमत पर तुम्हें खोना नहीं चाहती हूं.’’
विकास भी मां की बातें सुन कर भावुक हो गया था. उस ने मां की आंखों के आंसू पोंछे. वादा किया कि वह उसे छोड़ कर अब कहीं नहीं जाने वाला है. साथ ही उस ने यह सौगंध खाई कि वह उन दुष्कर्मियों को भी चैन से नहीं रहने देगा, जो आजाद जिंदगी जी रहे हैं. यह साल 2007 की बात है.
एक तरफ विकास की नए सिरे से जिंदगी की शुरुआत हो गई थी, दूसरी तरफ महत्त्वाकांक्षी क्षमा सिंह ने भी करिअर बनाने की दिशा में कदम उठा लिया था. उस ने भी आगे की पढ़ाई करने का मन बना लिया था. उसी शहर में रहने वाली बहनों ने उस का साथ दिया था.
साल 2013 में उस ने रुहेलखंड यूनिवर्सिटी, बरेली से बीए कर लिया था. इस के साथ ही वह बहनों के सहयोग से बिल्डिंग निर्माण के कारोबार में उतर आई थी. अपनी कंपनी बना कर बिल्डिंग बनाने का काम करने लगी थी. इस में उसे काफी सफलता मिली और वह देखते ही देखते आर्थिक रूप से मजबूत हो गई.
उस की जीवनशैली और रहनसहन उच्चस्तरीय हो गया, लेकिन दशकों पहले शरीर और मन में लगी खरोंच रहरह कर कचोटने लगती थी. उस का बेटा विकास भी ग्रैजुएशन कर सरकारी नौकरी के लिए प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी में जुट गया था, लेकिन मां के सीने में दबी पीड़ा को दूर करने के प्रति भी चिंतित था.