उत्तर प्रदेश के फतेहपुर शहर का एक मोहल्ला है मिश्रामऊ. इसी मोहल्ले में राजेश साहू अपने परिवार के साथ रहता था. उस के परिवार में पत्नी के अलावा 2 बेटे और एक बेटी सुलेखा थी. राजेश घी का कारोबार करता था. वह फतेहपुर शहर के आसपास के गांवगांव जा कर लोगों के यहां से घी खरीदता और फतेहपुर शहर में बेचता. इस से उसे जो फायदा होता, उसी से उस के परिवार की गुजरबसर होती थी.
राजेश साहू की बेटी सुलेखा सुंदर होने के साथसाथ थोड़ी चंचल भी थी. इसलिए सयानी होने पर मोहल्ले के कई युवक उस पर डोरे डालने की कोशिश करने लगे. यह भनक राजेश को लगी तो उसे चिंता होने लगी. तब उस ने बेटी के लिए वर की तलाश शुरू कर दी. थोड़ी भागदौड़ के बाद उसे सदर कोतवाली के मोहल्ला बक्सपुर राधा नगर में एक लड़का मिल गया.
लड़के का नाम राजू प्रसाद साहू था. उस के पिता भगवानदीन साहू के पास 5 बीघा उपजाऊ भूमि थी. भगवानदीन के 2 बेटे रामबाबू तथा राजू प्रसाद थे. रामबाबू का विवाह हो चुका था. वह परिवार सहित अलग रहता था. राजू पिता के साथ खेतीकिसानी करता था.
बातचीत शुरू हुई तो राजू और सुलेखा का रिश्ता पक्का हो गया. फिर जल्द ही दोनों की शादी हो गई.
राजू सुंदर पत्नी पा कर खुश था, जबकि सुलेखा अपने सांवले व दुबलेपतले पति से खुश नहीं थी. शादी से पहले उस के मन में पति की जो छवि थी, राजू उस में कहीं भी फिट नहीं बैठता था. लेकिन अब विवाह हो गया था, इसलिए मजबूरी में उस के साथ तो रहना ही था. शादी के 3 साल बाद सुलेखा एक बेटी अर्पिता की मां बन गई थी.