‘‘तुम्हारी बात तो कोई नहीं है, क्योंकि तुम तो कभी मेरा कहना मानती ही नहीं हो. पर कम से कम बेटियों का तो खयाल रखो. तुम्हारी आदतों का उन पर गलत प्रभाव पड़ सकता है. उन के बारे में तो सोचो.’’ राम सजीवन ने अपनी पत्नी फूलमती को समझाते हुए कहा.
‘‘हमें पता है कि हमें अपनी बेटियों को कैसे रखना है. हम कोई नासमझ नहीं हैं, जो अच्छीबुरी बात न समझें. लेकिन तुम्हें तो केवल दूसरों की बातें सुन कर हमारे ऊपर आरोप लगाने में ही मजा आता है.’’ पत्नी फूलमती ने झल्लाते हुए पति की बातों का जबाव दिया.
‘‘दूसरे की बातों में क्यों आऊंगा मैं? क्या मुझे दिखाई नहीं दे रहा कि तुम क्या करती हो. तुम्हारी बातें पूरे मोहल्ले में किसी से भी छिपी हुई नहीं हैं.’’ कहते हुए राम सजीवन घर से बाहर जाने लगा.
‘‘दरअसल, अब तुम शक्कीमिजाज के हो गए हो. हमारे पास जो भी खड़ा हो जाए. जो भी हमारे काम आ जाए. हमारे दुखदर्द में शामिल हो जाए, उसे देख कर तुम केवल यही सोचते हो कि उस के हमारे साथ संबंध बन गए हैं.’’ फूलमती बोली.
‘‘हम शक नहीं कर रहे बल्कि हकीकत है. हमें अब तुम्हारी चिंता नहीं है क्योंकि तुम मनमानी करोगी. हम तो बस बेटियों को ले कर परेशान हो रहे हैं. एक बार वे अपने घर चली जाएं. बस, उस के बाद तो हम तुम्हें कभी देखेंगे भी नहीं.’’ राम सजीवन ने कहा.
पत्नी की गलत आदतों की वजह से राम सजीवन मानसिक रूप से परेशान रहने लगा था. उस के एक बेटा और 3 बेटियां थीं. वह अपने तीनों जवान बच्चों को भी अच्छी सीख देता रहता था. जब उसे लगा कि पत्नी पर उस के कहने का कोई असर नहीं हो रहा है तो उस ने खुद को परिवार से दूर करना शुरू किया. वह स्वभाव से एकाकी रहने लगा.