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मनीष वैन ले कर नरौरा गांव आता. वैन को वह सड़क किनारे खड़ा कर सुनीता से मिलने पहुंच जाता. उस से मिल कर वह वापस लौट जाता. मनीष के आने की खबर घरवालों को कभी लगती तो कभी नहीं लगती थी. चूंकि मनीष, मौजीलाल का भांजा था. अत: उसे तथा उस की पत्नी चंद्रावती को उस के वहां आने पर कोई एतराज न था.

लेकिन एक रोज दोनों की चोरी पकड़ी गई. उस रोज मनीष आया और सुनीता से छेड़छाड़ करने लगा. तभी अचानक सुनीता की सास चंद्रावती आ गई. उस ने दोनों को अश्लील हरकत करते देख दिया. चंद्रावती ने बहू की शिकायत पति व बेटे से कर दी. मौजीलाल ने सुनीता को फटकार लगाई, ‘‘बहू, तुम्हें मर्यादा में रहना चाहिए. तुम इस घर की इज्जत हो. आइंदा इस बात का खयाल रखना.’’

सास की शिकायत और ससुर की नसीहत सुनीता को नागवार लगी. वह तुनक गई और घर में कलह करने लगी. वह कभी खाना बनाती तो कभी सिर दर्द का बहाना बना लेती. बच्चे भूख से बिलबिलाते तो वह उन की पिटाई करने लगती.

पति समझाने की कोशिश करता तो वह उस पर भी बरस पड़ती, ‘‘दिन भर साफसफाई करूं, खाना बनाऊं, बच्चों को पालूं और फिर ऊपर से बदचलनी का तमगा. कान खोल कर सुन लो, कि अब मैं सासससुर के साथ नहीं रह पाउंगी. तुम्हें मेरे साथ अलग रहना होगा.’’

राजेश में इतनी हिम्मत नहीं थी कि वह पिता से अलग रहने की बात कह सके. लेकिन जब मौजीलाल को बहू के त्रियाचरित्र और अलग रहने की बात पता चली तो उन्होंने देर नहीं की और वह पत्नी के साथ दूसरे मकान में रहने लगे.

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