प्रदीप उस का जरा भी विरोध नहीं कर पाता था. इस का कारण था कि वह घर का काफी खर्च अपने सिर उठाए हुए थी. वह उस से अधिक कमाई कर रही थी. उसे लगता था कि जैसे वह घरपरिवार की झंझटों से फ्री हो गई हो.
दूसरी तरफ प्रदीप सुस्त मिजाज का आलसी इंसान था. उस के पास कोई ठोस कामधंधा नहीं था. जो कुछ काम जानता था, वह कोरोना की भेंट चढ़ गया था. ज्योति की निगाह में वह एकदम निखट्टू था.
प्रदीप उसी के पास के गांव का रहने वाला 35-36 का था. हालांकि वह हंसमुख, मिलनसार और स्वभाव का सरल व्यक्ति था. वह ज्योति की तरह खुले विचारों का नहीं था.
यही कारण था कि ज्योति हर समय उस की नाक में दम किए रहती थी. प्रदीप ने मात्र इंटरमीडिएट तक की पढ़ाई की थी. वह एक समय में बंटाई पर खेतीबाड़ी किया करता था. वही उस के परिवार के लिए आमदनी का जरिया था.
परिवार में उस का बड़ा भाई महेंद्र सिंह था. बनी गांव के संतोष सिंह की बेटी ज्योति के साथ उस का विवाह साल 2012 में हुआ था. उस ने भी इंटरमीडिएट तक की पढ़ाई की थी. पढ़ाई के दरम्यान ही उस के दिमाग में आत्मनिर्भर बनने की बात बैठ गई थी. वह नौकरी करना चाहती थी.
विवाह के बाद उस के सपने एक तरह से मिटने लगे थे. जल्द ही बेटी की मां बन गई. फिर 2 साल बाद बेटा पैदा हुआ. 2 साल बाद उस ने एक और बच्चे को जन्म दिया.
शादी के कुछ साल बाद से ही उस का मन घर से बाहर निकल कर काम करने के लिए बेचैन रहता था. 5-6 सालों में घर का खर्च भी बढ़ने लगा था. इस के लिए उस ने पति को मना लिया कि वह शहर में कहीं काम तलाश करेगी.