उत्तर प्रदेश के कानपुर महानगर के नौबस्ता थाने के अंतर्गत एक कालोनी है खाड़ेपुर. यह कालोनी कानपुर विकास प्राधिकरण ने मध्यमवर्गीय आवास योजना के तहत विकसित की थी. इसी कालोनी के बी-ब्लौक में जगराम सिंह अपने परिवार के साथ रहता था.
उस के परिवार में पत्नी मीना सिंह के अलावा 2 बेटियां ममता, पूजा के अलावा एक बेटा राजकुमार था. जगराम सिंह पनकी स्थित एक फैक्ट्री में काम करता था. फैक्ट्री से मिलने वाली तनख्वाह से उस के घर का खर्च आसानी से चल जाता था.
बड़ी बेटी ममता की इंटरमीडिएट की पढ़ाई पूरी हो जाने के बाद जगराम सिंह ने उस की शादी कानपुर के कठारा निवासी मनोज से कर दी. मनोज 3 बहनों का एकलौता भाई था. पिता अपनी पुश्तैनी जमीन पर सब्जियां उगाते थे. मनोज उन सब्जियों को टैंपो से नौबस्ता मंडी में थोक में बेच आता था. इस से अच्छाखासा मुनाफा हो जाता था.
मनोज गांव से टैंपो पर सब्जी लाद कर नौबस्ता मंडी लाता था. नौबस्ता से खाडे़पुर कालोनी ज्यादा दूर नहीं थी. इसलिए वह हर तीसरेचौथे दिन ससुराल पहुंच जाता था.
नईनई शादी हुई हो तो दामाद के लिए ससुराल से बेहतरीन कोई दूसरा घर नहीं होता. इस का एक कारण भारतीय परंपरा भी है. दामाद घर आए तो सभी लोग उस के आगमन से विदाई तक पलक पावड़े बिछाए रहते हैं. खूब स्वागतसत्कार होता है. विदाई के समय उपहार भी दिया जाता है. यह उपहार सामान की शक्ल में भी होता है और नकदी के रूप में भी.
मनोज की ससुराल में दिल लगाने, हंसीमजाक और चुहल करने के लिए एक जवान और हसीन साली भी थी पूजा. हालांकि एक साला राजकुमार भी था, मगर मनोज उसे ज्यादा मुंह नहीं लगाता था. उस की कोशिश पूजा के आसपास बने रहने और उस के साथ चुहलबाजी, छेड़छाड़ करते रहने की होती थी. पूजा भी उस से खुल कर हंसीमजाक करती थी. दोनों में खूब पटती थी.