कोतवाल हेमेंद्र सिंह नेगी देहात क्षेत्र के गांवों में गस्त कर रहे थे, तभी उन के मोबाइल की घंटी बजी. नेगी ने मोबाइल स्क्रीन देखी, कोई अज्ञात नंबर था. इतनी रात में कोई यूं ही फोन नहीं करता. नेगी ने मोबाइल काल रिसिव की.
दूसरी ओर कोई अपरीचित था, जिस की आवाज डरीसहमी सी लग रही थी. हेमेंद्र सिंह के परिचय देने पर उस ने कहा, ‘‘सर, मेरा नाम अभिषेक है और मैं आप के थाना क्षेत्र के गांव झीबरहेडी से बोल रहा हूं. मुझे आप को यह सूचना देनी थी कि आधा घंटे पहले बदमाशों ने मेरे चचेरे भाई प्रदीप की हत्या कर दी है.’’
‘‘हत्या, कैसे? पूरी बात बताओ’’
‘‘सर मुझे हत्यारों की तो कोई जानकारी नहीं है, क्योंकि उस वक्त मैं गहरी नींद में था. करीब आधा घंटे पहले मेरे मकान की दीवार से किसी के कूदने की आवाज आई थी. मुझे लगा कि गांव में बदमाश आ गए हैं. मैं तुरंत नीचे आ कर दरवाजा बंद कर के लेट गया.
‘‘थोड़ी देर बाद चचेरे भाई प्रदीप के कराहने की आवाज आई तो मैं बाहर आया. मैं ने देखा कि प्रदीप लहूलुहान पड़ा था, उस के पेट, छाती व सिर पर धारदार हथियारों से प्रहार किए गए थे.’’ अभिषेक बोला.
‘‘फिर?’’
‘‘सर, फिर मैं ने अपने घरवालों को जगाया और प्रदीप को तत्काल अस्पताल ले जाने को कहा. लेकिन हम प्रदीप को अस्पताल ले जाते, उस ने दम तोड़ दिया.’’ अभिषेक बोला.
‘प्रदीप किसान था?’ नेगी ने पूछा
‘नहीं सर प्रदीप स्थानीय श्री सीमेंट कंपनी में ट्रक चलाता था और गत रात ही वह देहरादून से लौटा था. रात को वह अकेला ही अपने घर की छत पर सो रहा था.’ अभिषेक बोला.