कई बार घंटी बजाने पर भी न दरवाजा खुला, न अंदर कोई आहट हुई. अमूमन ऐसा होता नहीं है, लेकिन ऐसा ही हो रहा था. अबकी बार वेटर ने दरवाजा खटखटाया, एक नहीं कई बार. लेकिन कोई नतीजा नहीं निकला.
वेटर रिसैप्शन पर बैठे मैनेजर दुर्गेश पटेल के पास पहुंचा. वह रिसैप्शनिस्ट से बातें कर रहे थे. वेटर ने तेजी से आ कर कहा, ‘‘सर, कमरा नंबर 303 का दरवाजा नहीं खुल रहा. मैं ने घंटी बजाई, दरवाजा थपथपाया, पर कोई नतीजा नहीं निकला.’’
‘‘कमरे में कोई है भी या यूं ही...’’
मैनेजर ने कहा तो वेटर की जगह रिसैप्शनिस्ट ने जवाब दिया, ‘‘हां, मैडम हैं कमरे में. उन का साथी बाहर गया है. कह रहा था थोड़ी देर में आता हूं, पर आया नहीं. मैं उसे फोन करता हूं.’’
रिसैप्शनिस्ट ने विजिटर्स रजिस्टर खोल कर कमरा नंबर 303 के कस्टमर का फोन नंबर देखा और उसे फोन मिला दिया. लेकिन फोन स्विच्ड औफ था. इस से वह घबराया. उस ने यह बात दुर्गेश पटेल को बताई. साथ ही यह भी कि चायनाश्ते के बरतन अंदर हैं. वेटर को मैं ने ही भेजा था.
बात चिंता की थी. वेटर, रिसैप्शनिस्ट और मैनेजर दुर्गेश पटेल तुरंत खड़े हो गए. कमरा नंबर 303 के सामने पहुंच कर मैनेजर दुर्गेश पटेल ने भी वही किया, जो वेटर कर चुका था. काफी प्रयास के बाद भी जब दरवाजा नहीं खुला और न ही कमरे के अंदर कोई हलचल हुई तो उन के मन में तरहतरह की शंकाएं जन्म लेने लगीं. उन्हें लगा कमरे के अंदर जरूर कोई गड़बड़ है. कमरे में ठहरा युवक थोड़ी देर में आने को कह कर गया था, लेकिन आया नहीं. उस ने अपना फोन भी बंद कर लिया था. कहीं उस ने ही तो कुछ नहीं किया.