पहली मई, 2017 को सोबरन सिंह अदालत के कटघरे में खड़ा था. उस दिन उस की जिंदगी का अहम फैसला होने वाला था. उस की आंखों में याचना थी. अपराध ऐसा था, जिसे सुन कर लोगों के रोंगटे खड़े हो जाएं. फिर भी उसे उम्मीद थी कि सामने डायस पर बैठे जज साहब उसे जीवनदान दे देंगे.
आखिर गलती किससे नहीं होती. लेकिन उस ने जो किया था, उसे गलती नहीं, गुनाह कहते हैं. विवाह से ले कर जुर्म करने तक का घटनाक्रम किसी चलचित्र की तरह उस की आंखों के सामने घूम गया था. जब 15 साल पहले उस की शादी ममता से हुई तब वह बहुत खुश था. ममता उत्तर प्रदेश के जिला फर्रुखाबाद के गांव समसुइया निवासी सतीशचंद्र की बेटी थी.
शादी के बाद ममता अपनी ससुराल रूपपुर पहुंची तो घर खुशियों से भर उठा. बहू के आने पर बूढ़ी सास को राहत मिली थी, क्योंकि उन का बड़ा बेटा पन्नालाल पत्नी को ले कर अलग रहता था. वह छोटे बेटे सोबरन के साथ रहती थीं. आते ही ममता ने घर संभाल लिया. समय के साथ ममता 3 बेटियों और 2 बेटों की मां बनी.
घर में खुशहाली थी. सोबरन ठीकठाक कमाता था, इसलिए आराम से गुजारा हो रहा था. भाई पन्नालाल पड़ोस में ही रहता था, लेकिन उस से उस के संबंध अच्छे नहीं थे.
अचानक ममता को पति में बदलाव महसूस होने लगा. वह घर खर्च के लिए जो पैसे देता था, उस में कमी कर दी थी. पूछने पर कहता कि आजकल काम ठीक नहीं चल रहा है. कभी पैसे गिर जाने का बहाना बना देता. ममता की समझ में नहीं आ रहा था कि वह क्या करे?