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संदीप खुश था कि उसे युवती से बात करने के लिए कुछ समय मिल गया था. उस की मां को संदीप घर की टायलेट में छोड़ कर जल्दी से दुकान में आ गया. संदीप के सामने खुद को अकेला पा कर वह लड़की सकुचाई हुई अपनी जगह पर सिमट कर बैठ गई.

‘‘क्या नाम है तुम्हारा?’’ संदीप ने मुसकरा कर पूछा.

‘‘सुधा!’’ वह हौले से बोली.

‘‘मुझे तुम पहली नजर में ही पसंद आ गई हो, क्या मुझ से दोस्ती करोगी?’’

‘‘जी.’’ वह घबरा कर बोली, ‘‘मैं सोच कर बताऊंगी.’’

‘‘मुझे अपना नंबर दे कर जाओ. अपनी स्वीकृति शाम तक बता देना.’’ संदीप ने कहने के बाद अपना मोबाइल उठा कर उस की तरफ बढ़ा दिया.

युवती ने उस के मोबाइल में अपना नंबर अपने नाम के साथ सेव कर दिया.

सुधा की मां वापस आ गई तो दोनों को छोड़ने संदीप दरवाजे तक आया.

‘‘आप बहुत अच्छे हैं.’’ सुधा धीरे से फुसफुसा कर बोली और तेजी से मां के पीछे बाहर निकल गई.

यह सुधा से संदीप की पहली मुलाकात थी. वह बहुत खुश था और मन में यह सोच भी लिया था कि यदि सुधा ने उस की तरफ दोस्ती का हाथ बढ़ाया तो वह उसे अन्य लड़कियों की तरह इस्तेमाल कर के छोड़ेगा नहीं, बल्कि उसे अपनी जीवनसंगिनी बना लेगा.

शाम होने तक संदीप बहुत उतावला और बेचैन रहा. उस की नजरें बारबार अपने मोबाइल की स्क्रीन पर चली जाती थीं. उसे सुधा के फोन का इंतजार था.

प्यार हुआ इकरार हुआ

रात के 8 बजे सुधा का नंबर स्क्रीन पर चमका तो संदीप ने धड़कते दिल से काल रिसीव करते हुए कहा, ‘‘हैलो सुधा, मैं तुम्हारे ही फोन का इंतजार कर रहा था. बोलो, क्या सोचा है तुम ने, क्या मुझे अपना दोस्त बनाओगी या...’’

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