कुछ दिन बाद डौली के वापस आने की जानकारी शिववीर को हुई तो वह उसे लेने आ पहुंचा. लेकिन सुभाष ने डौली को यह कह कर उस के साथ नोएडा नहीं भेजा कि बहू के जाने से घर में रोटीपानी की परेशानी होगी. क्योंकि डौली की सास शारदा की तबियत खराब चल रही थी.
शिववीर अब 15 दिन में घर आता. 2-3 दिन रहता, उस के बाद फिर नौकरी पर नोएडा चला जाता. लेकिन जब भी आता, पापा से पैसों की डिमांड करता. न देने पर लड़ाईझगड़ा करता. मां शारदा से भी उलझ जाता. एक दिन तो हद ही हो गई. शिववीर ने पापा सुभाष पर हाथ छोड़ दिया. पति पर हाथ छोडऩा शारदा को नागवार लगा, इसलिए वह उस से भिड़ गई और कई तमाचे शिववीर के गाल पर जड़ दिए.
घर आतेजाते एक रोज शिववीर को पता चला कि पापा व दोनों भाइयों ने मिल कर सड़क किनारे एक प्लौट तथा 5 बीघा उपजाऊ भूमि खरीदी है. लेकिन प्लौट व जमीन में उस का नाम दर्ज नहीं कराया गया है. वह मन ही मन जलभुन उठा. उस के मन में घर वालों के प्रति नफरत की आग सुलगने लगी.
शिववीर ने इस बाबत पापा से पूछा तो उन्होंने कहा कि सोनूू और भुल्लन ने अपनी कमाई से खेत खरीदे हैं. यह सुन कर शिववीर गुस्से से बोला, ''खेत, प्लौट खरीदने को तुम लोगों के पास पैसा है, लेकिन हमारा कर्ज चुकाने को तुम्हारे पास पैसा नहीं है. यह नाइंसाफी है.’’
शिववीर ने इस नाइंसाफी के बारे में बहनोई सौरभ तथा मामा विनोद से भी बात की, लेकिन उन लोगों ने भी उस की एक न सुनी. शिववीर अब मामा व बहनोई से भी नफरत करने लगा.