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धीरेधीरे समय गुजरता गया. गीता अपने सौतेले बाप और भाई के जुल्म सहन करतीकरती जवानी की दहलीज पर आ खड़ी हुई थी. लेकिन दोनों बापबेटों ने उसे व उस के घर वालों को बंधुआ मजदूर बना कर रख दिया था.

जब यह सब भावना देवी से सहन नहीं हुआ तो उस ने एक दिन गीता को प्यार से समझाया, ‘‘बेटी, तू अब समझदार हो गई है. तू इन लोगों के जुल्म कब तक सहती रहेगी. अब तू मेरी चिंता छोड़. तू किसी अच्छे सीधेसादे लड़के को देख कर उस के साथ शादी कर अपना घर बसा ले.’’

मां की तरफ से शादी की छूट मिलते ही गीता का हौसला बढ़ा. गीता ने उसी दिन अपनी मां की बात दिमाग में बैठा ली.

फिर वह एक ऐसे ही लड़के की तलाश में लग गई. लेकिन काफी प्रयास करने के बाद भी उसे कोई ऐसा लड़का नहीं मिल रहा था, जो उसे अपनी जीवनसंगिनी बना कर उसे खुश रख सके.

एक साल पहले की बात है. गीता किसी काम से भिकियासैंण गई हुई थी. भिकियासैंण के बाजार में ही उस की मुलाकात जगदीश चंद्र से हुई. जगदीश ग्राम पनुवाधोखन निवासी केसराम का बेटा था. वह अनुसूचित जाति का था. उसे देखते ही वह पास आया और गीता के बारे में जानकारी ली.

उसे देखते ही गीता को लगा कि जगदीश एक सीधासादा युवक है. उस दिन दोनों में जानपहचान हुई. बातों ही बातों में एकदूसरे के परिवार की जानकारी ली.

जगदीश ने उसी मुलाकात में बताया था कि वह ठेकेदार कविता मनराल के ठेके में ‘हर घर नल, हर घर जल’ मिशन के अंतर्गत घरघर नल लगवाने का काम करता है. जगदीश चंद्र ने उसे यह भी बता दिया था कि अभी उस की शादी नहीं हुई है. उस के घर वाले उस के लिए लड़की तलाश रहे हैं.

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