कहा जाता है कि बेटेबेटी का सुख मांबाप के लिए अमृत है. लेकिन यही अमृत अगर जहर बन जाए तो उन के लिए बरदाश्त करना मुश्किल हो जाता है. ऐसा ही कुछ शकुंतला के साथ हुआ. जब उन्हें पता चला कि मधुमती का पति एक नंबर का शराबी और निकम्मा है तो वह टूट कर बिखर गईं. बेटी के गम में वह बीमार रहने लगीं. उन के इस गम ने उन्हें मौत तक पहुंचा दिया.
शकुंतला की मौत से अगर किसी को खुशी हुई थी तो वह गिरीश था. अब उस फ्लैट में वह जैसे चाहेगा, रह सकेगा. मां की मौत के बाद मधुमती बेटे के साथ अपने फ्लैट में रहने आ गई. फ्लैट में आते ही गिरीश उसे बेचने के चक्कर में रहने लगा. वह उस फ्लैट को बेच कर उस का सारा पैसा अय्याशी मे उड़ा देना चाहता था. इस के लिए वह शातिर चाल भी चलने लगा.
मधुमती से शादी करते समय जिस तरह वह संत बन गया था, फ्लैट बिकवाने के लिए भी उसी तरह एक बार फिर संत बन गया. मधुमती और बेटे से खूब प्यार करने लगा. मधुमती के दिल में एक अच्छे आदमी की इमेज बनाने के लिए वह नौकरी भी ढूंढ़ने लगा. जब गिरीश को लगा कि मधुमती उस पर विश्वास करने लगी है, तब उस ने अपनी नायाब चाल चली. मजे की बात, मधुमती उस में फंस भी गई.
भोलीभाली मधुमती को विश्वास में ले कर उस ने बिजनैस की योजना बनाई और उस में 50 लाख रुपए लगाने की बात की. इस के बाद मधुमती का फ्लैट 43 लाख रुपए में बेच कर सारा पैसा अपने नाम जमा करा लिया और रहने के लिए भायंदर के नक्षत्र टावर के 14वीं मंजिल पर एक फ्लैट किराए पर ले लिया.