विधवा मंजीत कौर ने अपने विवाहित देवर को न सिर्फ अपने जाल में फांसा बल्कि उस की गृहस्थी उजाड़ कर शादी भी कर ली. इस के बाद उस का ऐसा कौन सा स्वार्थ रह गया जिस के चलते उस ने अपने सौतेले बेटे को भी ठिकाने लगा दिया

‘‘दखो सरदारजी, एक बात सचसच बताना, झूठ मत बोलना. मैं पिछले कई दिनों से देख रही हूं कि आजकल तुम अपनी भरजाई पर कुछ ज्यादा ही प्यार लुटा रहे हो. क्या मैं इस की वजह जान सकती हूं?’’ राजबीर कौर ने यह बात अपने पति हरदीप सिंह से जब पूछी तो वह उस से आंखें चुराने लगा. पत्नी की बात का हरदीप को जवाब भी देना था, इसलिए अपने होंठों पर हलकी मुसकान बिखेरते हुए उस ने राजबीर कौर से कहा, ‘‘तुम भी कमाल करती हो राजी. तुम तो जानती ही हो कि बड़े भाई काबल की मौत हुए अभी कुछ ही समय हुआ है. भाईसाहब की मौत से भाभीजी को कितना सदमा पहुंचा है. यह बात तुम भी समझ सकती हो. मैं बस उन्हें उस सदमे से बाहर निकालने की कोशिश कर रहा हूं. और फिर भाईसाहब के दोनों बच्चे मनप्रीत सिंह और गुरप्रीत सिंह भी अभी काफी छोटे हैं.’’

हरदीप अपनी पत्नी को प्यार से राजी कह कर बुलाता था.

‘‘हां, यह बात तो मैं अच्छी तरह समझ सकती हूं पर कोई ऐसे तो नहीं करता, जैसे तुम कर रहे हो. तुम्हें यह भी याद रखना चाहिए कि अपना भी एक बेटा किरनजोत है. तुम अपनी बीवीबच्चे छोड़ कर हर समय अपनी विधवा भाभी और उन के बच्चों का ही खयाल रखोगे तो अपना घर कैसे चलेगा.’’ राजबीर कौर बोली.

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