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आरजू मन मसोस कर रह गई. उस ने दूसरे दिन मेहताब के दुकान पर जाने के बाद चुपके से अपने प्रेमी कासिफ को फोन मिलाया और अपना जिस्म मैला हो जाने की जानकारी देते हुए आंसू बहाए, ‘‘अगर तुम ने मुझ से तुरंत निकाह कर लिया होता तो मैं तुम्हारे लिए अछूती ही आती कासिफ, लेकिन तुम्हारी लापरवाही से मैं अपना दामन मैला कर बैठी.’’

‘‘यह तो होना ही था आरजू.’’ कासिफ गंभीर स्वर में बोला, ‘‘यदि तुम मुझे प्यार करती तो मेहताब के साथ निकाह को मना कर देती. अब उसे शौहर बनाया है तो उस के पहलू में सोना भी पड़ेगा और उस की हर बात माननी भी पड़ेगी.’’

‘‘यानी कुसूर मेरा ही है.’’ आरजू गुस्से में बोली, ‘‘लड़की होते तो देखती तुम अपने अम्मीअब्बू या उन की इज्जत की खातिर उन की बात मानते या नहीं. मैं ने बहुत इंकार किया था इस निकाह के लिए, लेकिन अम्मी ने अपनी इज्जत की दुहाई दी तो मुझे निकाह के लिए हां कहना पड़ा. फिर भी कहूंगी तुम्हारी वजह से ऐसा हुआ, तुम अच्छी नौकरी पा जाते तो मैं तुम से निकाह कर लेती.’’

‘‘गुस्सा मत करो यार, जो हुआ उसे मजबूरी समझ कर सह लो. मैं जल्दी ही तुम्हें अच्छी खबर दूंगा.’’ कासिफ ने समझाया तो लंबी सांस ले कर आरजू ने फोन काट दिया और घर के काम में लग गई.

आरजू ने 2-3 महीने तक अच्छी बहू बन कर दिखाया. फिर वह घर के काम में लापरवाही बरतने लगी. थोड़ाबहुत काम करती. मेहताब के जाने के बाद वह कमरा बंद कर के फोन से चिपक जाती. रुखसाना बाकी काम समेटती. रोजरोज ऐसा होने लगा तो रुखसाना ने एक दिन आरजू को टोक दिया, ‘‘बहू अब तुम रोटी पकाती हो और फोन ले कर कमरे में बंद हो जाती हो. यह क्या चल रहा है?’’

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