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सरोजनी को घर में हर सुख नसीब था, लेकिन पति की सैक्स के प्रति कमी उसे खलती थी. वह हर रात पति की बांहों का हार बनना चाहती थी, पर ललित उस से दूर भागता था. दरअसल, ललित मेहनती था. वह सुबह से 12 बजे तक किराने की दुकान चलाता था. उस के बाद खेतों पर चला जाता था फिर शाम को ही घर लौटता था.

अंकुर से लड़ गए नैना

दिन भर की मेहनत से वह इतना थक जाता था कि उसे चारपाई ही सूझती थी. ललित रात में खर्राटें भरता रहता और सरोजनी गीली लकड़ी की तरह सुलगती रहती.

ललित पासवान का एक दोस्त था अंकुर श्रीवास्तव. वह तुलसियापुर में ही ललित के घर से कुछ दूरी पर रहता था. अंकुर की विधनू कस्बे में सिलाई मशीनों की दुकान थी. वह नई मशीन तो बेचता ही था, पुरानी सिलाई मशीनों की मरम्मत भी करता था.

अंकुर मजाकिया स्वभाव का था. ललित को जब भी फुरसत मिलती तो वह अंकुर की दुकान पर पहुंच जाता था. वहां दोनों साथ खातेपीते और खूब बातें करते. ललित पहले शराब नहीं पीता था. अंकुर की संगत ने ही उसे शराब का लती बना दिया था.

सरोजनी सिलाई मशीन चलाती थी. वह अपने घर के कपड़े घर पर ही सिल लेती थी. एक दिन उस की मशीन खराब हो गई तो उस ने पति से मशीन मरम्मत कराने की बात कही. ललित ने तब मरम्मत के लिए अंकुर को बुलवा लिया.

ललित की दूसरी शादी के बाद अंकुर उस दिन पहली बार ललित के घर आया था. उस ने रूपयौवन से लदी हुई ललित की दूसरी पत्नी सरोजनी को देखा तो वह उस की आंखों में बस गई.

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