पैसे के लिए किसी के मासूम बेटे का अपहरण कर के उसे मार डालने का अपराध मृत्युदंड से कम नहीं होना चाहिए. रुद्राक्ष अपहरण, हत्याकांड के आरोपी अंकुर पाडिया को जो सजा मिली, वह उसी के लायक था.

26फरवरी, 2018 की बात है. कोटा शहर की अदालत में उस दिन आम दिनों से कुछ ज्यादा ही भीड़ थी.

अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति अत्याचार निवारण प्रकरण न्यायालय के विशिष्ट न्यायाधीश गिरीश अग्रवाल की अदालत के बाहर सब से ज्यादा मौजूद भीड़ थी. भीड़ में शहर के आम लोगों के अलावा वकील भी शामिल थे.

अदालत में भीड़ जुटने का कारण यह था कि उस दिन कोटा के बहुचर्चित रुद्राक्ष अपहरण हत्याकांड का फैसला सुनाया जाना था. इसलिए रुद्राक्ष के मातापिता के अलावा उन के कई परिचित भी अदालत में आए हुए थे.

भीड़ में इस बात को ले कर खुसरफुसर हो रही थी कि अदालत क्या फैसला सुनाएगी. कोई कह रहा था कि आरोपियों को फांसी होगी तो कोई उम्रकैद होने का अनुमान लगा रहा था. दरअसल, इस मामले से कोटा की जनता का भावनात्मक जुड़ाव रहा था, इसलिए पूरे कोटा शहर की नजरें फैसले पर टिकी हुई थीं.

विशिष्ट न्यायाधीश गिरीश अग्रवाल समय पर अदालत में पहुंच गए. जज साहब ने पहले अदालत के जरूरी काम निपटाए. फिर उन्होंने रुद्राक्ष हत्याकांड की फाइल पर नजर डाली और इस मामले के चारों आरोपियों को दोपहर 2 बजे अदालत में पेश होने का संदेश भिजवा दिया.

  अदालत के बाहर जमा लोगों को जब पता लगा कि जज साहब ने दोपहर 2 बजे आरोपियों को अदालत में पेश करने को कहा है तो वहां से धीरधीरे भीड़ कम होने लगी.

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