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दीपावली के ठीक अगले दिन यानी 24 अक्टूबर, 2014 को सवेरा होते ही उत्तराखंड की राजधानी देहरादून के लोग अपनी दिनचर्या  में लीन होना शुरू हो गए थे. आर्थिक रूप से काफी संपन्न सरदार जय सिंह के घर भी सवेरा होते ही चहलपहल शुरू हो जाती थी, लेकिन उस दिन उन के यहां इस तरह खामोशी छाई थी, जैसे वहां कोई रहता ही न हो.

व्यवहारकुशल जय सिंह का खुशहाल परिवार थाना कैंट के चकराता रोड स्थित पौश इलाके आदर्शनगर में रहता था. उन की विज्ञापन एजेंसी तो थी ही, होर्डिंग्स का भी काफी बड़ा कारोबार था. उन के घर काम करने वाली नौकरानी राजो सुबह ही काम करने के लिए आ जाती थी. उस दिन भी 7 बजे के करीब वह काम करने के लिए आ गई थी.

घर का मुख्य दरवाजा देख कर उसे आश्चर्य हुआ, क्योंकि रोजाना उसे दरवाजा खुला मिलता था. लेकिन उस दिन बंद था. घर के अंदर से किसी तरह की आवाज भी नहीं आ रही थी. ऐसा लग रहा था, जैसे घर खाली पड़ा है. उस की समझ में नहीं आ रहा था कि घर के लोग इतनी देर तक सोए क्यों पड़े हैं, लेकिन ऐसा हो नहीं सकता था.

जय सिंह सुबह ही मार्निंग वौक के लिए निकल जाते थे, लेकिन राजो के आने से पहले ही वह आ जाते थे. दरवाजे पर बाहर ताला नहीं लगा था, इसलिए राजो ने दरवाजे पर दस्तक दी. कोई बाहर नहीं आया तो उस ने कौलबेल बजाई. कौलबेल बजाने के थोड़ी देर बाद जय सिंह का 21 वर्षीय युवा बेटा हरमीत दरवाजे पर आया.

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