सुरेंद्र के लिए यह सुनहरा मौका था. घर में लवली अकेली रह गई थी. अब वह उस से कुछ भी कह सकता था और उस की इच्छा होने पर उस के साथ कुछ भी कर सकता था. गांव में सुरेंद्र को ही डा. बिस्वास अपना सब से करीबी मानता था, इसलिए पत्नी और बच्चों की जिम्मेदारी उसे ही सौंप गया था.
इस जिम्मेदारी को निभाने के लिए सुरेंद्र ने लवली के पास आ कर कहा था, ‘‘किसी भी चीज की जरूरत हो, बेझिझक कहना.’’
लवली ने एक आंख दबा कर कहा, ‘‘डा. साहब तो गांव जा रहे हैं. अब हमें अपनी सभी जरूरतें तुम्हें ही बतानी पड़ेंगी.’’
सुबह सुरेंद्र ने क्लिनिक खुलवाई तो रात को बंद भी उसी ने करवाई. क्लिनिक बंद करा कर वह जाने लगा तो लवली ने कहा, ‘‘रुको, खाना खा कर जाना. वैसे भी अकेली बोर हो रही हूं.’’
बच्चे खा कर जल्दी ही सो गए थे. उस के बाद लवली और सुरेंद्र ने खाना खाया. इस बीच दोनों दुनिया जहान की बातें करते रहे. कामों से फुरसत हो कर लवली सुरेंद्र के पास आई तो उस ने उसे बांहों में भर लिया. तब लवली ने कहा, ‘‘सुरेंद्र, तुम तो जानते ही हो कि मैं शादीशुदा ही नहीं, 2 बच्चों की मां भी हूं. तुम्हारा यह प्यार मेरे शरीर तक तो ही सीमित नहीं रहेगा?’’
‘‘मैं तुम्हारे शरीर से नहीं, तुम से प्यार करता हूं. मैं तुम्हें वही इज्जत दूंगा, जो एक पत्नी को मिलती है. मैं तुम्हें रानी बना कर रखूंगा. तुम्हें तो पता ही है कि मेरे पास किसी चीज की कमी नहीं है.’’ सुरेंद्र ने कहा.
‘‘क्या तुम मुझ से विवाह करोगे?’’
‘‘क्यों नहीं. मैं ने तुम से प्यार किया है तो विवाह भी करूंगा.’’ कह कर सुरेंद्र ने अपने प्यार की मुहर लवली के कपोलों पर लगा दी. सुरेंद्र की मजबूत बांहों में लवली पिघलने लगी थी. वह भी उस से लिपट गई. तब उस ने न पति के बारे में सोचा, न बच्चों के बारे में.
डा. विश्वास के वापस आतेआते उस की गृहस्थी में सेंध लग चुकी थी. दोस्त और पत्नी ने डा. बिस्वास के विश्वास को खत्म कर दिया था. डाक्टर तो अपने काम में लगा रहता था, ऐसे में लवली को प्रेमी से मिलने में कोई परेशानी नहीं होती थी. दोनों दिन में न मिल पाते तो रात में डाक्टर के सो जाने के बाद मिल लेते थे.
सुरेंद्र और लवली का यह संबंध ज्यादा दिनों तक न तो गांव वालों से छिपा रह सका न डा. बिस्वास से. पत्नी के बेवफा हो जाने से डाक्टर हैरान तो हुआ ही, परेशान भी हो उठा. उसे पत्नी से ऐसी उम्मीद नहीं थी. जब गांव के कई लोगों ने उसे टोका तो एक दिन उस ने लवली से पूछा, ‘‘मैं जो सुन रहा हूं क्या वह सच है?’’
‘‘तुम क्या सुन रहे हो. मुझे कैसे पता चलेगा. इसलिए मैं क्या बताऊं कि तुम ने जो सुना है, वह सच है या झूठ?’’
‘‘तुम जानती हो कि तुम्हें और सुरेंद्र को ले कर गांव में खूब चर्चा हो रही है. मेरे खयाल से यह ठीक नहीं है. अगर तुम अपनी सीमा में रहो तो तुम्हारे लिए भी ठीक रहेगा और मेरे लिए भी.’’ डा. बिस्वास ने चेताया.
‘‘यह झूठ है. गांव वालों की बातों में आ कर मुझ पर शक करने लगे. मैं तुम्हारी सगी हूं या गांव वाले?’’ लवली बोली.
लवली ने भले ही अपने ऊपर लगे आरोप को नकार दिया था, लेकिन डा. बिस्वास को उस की बात पर विश्वास नहीं हुआ. फलस्वरूप वह तनाव में रहने लगा. सब से ज्यादा चिंता उसे अपने बच्चों की थी. अब अकसर पतिपत्नी में लड़ाईझगड़ा और मारपीट होने लगी. इस के बावजूद लवली ने सुरेंद्र से मिलना बंद नहीं किया. इस की एक वजह यह भी थी कि सुरेंद्र उसे शादी का भरोसा दे रहा था. शायद इसीलिए उसे न पति की परवाह रह गई थी, न ही बच्चों की. अब उसे सिर्फ अपने सुख की परवाह रह गई थी.
हालात बेकाबू होते देख डा. बिस्वास गांव लौटने की सोचने लगा. जहां उस का घर था और अपने लोग भी थे. लेकिन लवली वापस जाने के लिए तैयर नहीं थी. इसलिए उस ने सुरेंद्र से साफ कह दिया, ‘‘जो कुछ भी करना है जल्दी कर लो, वरना डाक्टर मुझे जबरदस्ती कोलकाता ले कर चला जाएगा. तब मैं उसे मना भी नहीं कर पाऊंगी. क्योंकि बिना विवाह के मैं तुम्हारे साथ रह भी नहीं सकती.’’
लवली के दबाव डालने पर सुरेंद्र लवली को ले कर बरेली में रहने ही नहीं लगा, बल्कि कोर्टमैरिज भी कर ली. पत्नी और दोस्त के विश्वासघात से डा. बिस्वास टूट गया. वह गांव वालों के सामने फूटफूट कर रो पड़ा. गांव वालों को उस से सहानुभूति तो थी, लेकिन कोई कुछ नहीं कर पाया. सुरेंद्र के पिता रामचरण सिंह और भाई महेंद्र को भी उस की यह हरकत पसंद नहीं आई, लेकिन उस की दबंगई के आगे उन की भी एक न चली.
डा. बिस्वास की दुनिया लुट चुकी थी. जिसे सुख देने के लिए वह घरपरिवार छोड़ कर इतनी दूर आया था, जब वही छोड़ कर चली गई तो उस के लिए यहां रहना मुश्किल हो गया. वह अपने बच्चों को ले कर अपने गांव लौट गया. यह करीब 17 साल पहले की बात है.
डा. बिस्वास गांव छोड़ कर चला गया तो सुरेंद्र लवली को ले कर गांव आ गया. लेकिन घर वालों ने उसे साथ नहीं रखा. उस के हिस्से की जमीन दे कर उसे अलग कर दिया. सुरेंद्र ने लवली के साथ अपनी गृहस्थी अलग बसा ली और आराम से रहने लगा.
लवली अब सुरेंद्र की प्रेमिका नहीं, पत्नी थी. इसलिए सुरेंद्र अब उसे अपने हिसाब से रखना चाहता था, जबकि लवली सीमाओं में बंध कर नहीं रहना चाहती थी. लवली सुरेंद्र के 2 बच्चों, वीरेंद्र और तृप्ति की मां बन गई थी. इस के बावजूद वह जिस तरह रहती आई थी, उसी तरह रहना चाहती थी. सुरेंद्र लवली को अपने हिसाब से रखने लगा तो उसे लगा कि उस की आजादी खत्म हो रही है. वह बंदिशों में रहने वाली नहीं थी. डा. बिस्वास ने कभी उसे बंदिशों में रखा भी नहीं था, इसलिए सुरेंद्र की ये बंदिशें उसे खल रही थीं.
अब लवली को अपना यह यार अखरने लगा था. उसे ज्यादा परेशानी हुई तो एक दिन उस ने सुरेंद्र से कह भी दिया, ‘‘मैं तुम्हारी खरीदी हुई गुलाम नहीं कि जो तुम कहोगे, मैं वही करूंगी. मैं उन औरतों में नहीं हूं, जो पति की अंगुली पकड़ कर चलती हैं. मेरी भी अपनी इच्छाएं हैं. मैं अपने हिसाब से जीना चाहती हूं.’’
लवली की ये बातें सुरेंद्र को बिलकुल अच्छी नहीं लगीं. अब उसे लगा कि दूसरे की पत्नी को अपनी पत्नी बना कर उस ने बड़ी गलती की है. लेकिन उसे अपनी मर्दानगी पर विश्वास था, इसलिए उसे लगता था कि वह जिस तरह चाहेगा, पत्नी को रखेगा. लेकिन उस का यह विश्वास तब टूट गया, जब लवली ने उस की मरजी के खिलाफ मीरगंज के एक निजी अस्पताल में नर्स की नौकरी कर ली.
लवली ने घर के बाहर कदम रखा तो उस की लोगों से जानपहचान बढ़ने लगी. उन में से कुछ लोगों से उस की दोस्ती भी हो गई, तो वे उस से मिलने हुरहुरी तक आने लगे. सुरेंद्र और उस के भाइयों ने इस का विरोध किया. लेकिन लवली अब खुद अपने पैरों पर खड़ी थी, इसलिए उस ने किसी की एक नहीं सुनी.
सुरेंद्र ने लवली को समझाया भी और धमकाया भी, लेकिन उस पर कोई असर नहीं हुआ. वह उस की कोई भी बात मानने को तैयार नहीं थी. सुरेंद्र और उस के भाइयों ने ज्यादा रोकटोक की तो लवली ने मीरगंज के मोहल्ला मुगरा में एक कमरा किराए पर लिया और उसी में बच्चों के साथ रहने लगी. बच्चे भी अब तक काफी बड़े हो गए थे. बेटा वीरेंद्र 16 साल का था तो बेटी तृप्ति 14 साल की.