उत्तर प्रदेश के कानपुर शहर से 10 किलोमीटर दूर एक छोटा सा कस्बा है-सचेंडी. इसी कस्बे में चंद्रिका सिंह अपने परिवार के साथ रहते थे. उन के परिवार में पत्नी के अलावा एक बेटी आशा उर्फ बिट्टी तथा बेटा बदन सिंह था. चंद्रिका सिंह की कस्बे में प्लास्टिक के सामानों की दुकान थी. दुकान की कमाई से वह अपने परिवार का भरणपोषण करता था.
चंद्रिका सिंह की बेटी आशा बेहद खूबसूरत थी. जवान होने पर उस की सुंदरता में और भी निखार आ गया था. आशा ने हाईस्कूल की परीक्षा अर्मापुर कालेज से पास कर ली थी. वह आगे भी पढ़ना चाहती थी. लेकिन मांबाप ने उस की पढ़ाई बंद करा दी. उस के बाद वह मां के घरेलू काम में हाथ बंटाने लगी.
चंद्रिका सिंह को अब जवान बेटी के ब्याह की चिंता सताने लगी थी. वह उस के योग्य वर की खोज में जुट गए थे. वह अपनी लाडली बेटी का ब्याह उस घर में करना चाहते थे, जहां उसे किसी चीज का अभाव न हो और परिवार भी बड़ा न हो. काफी प्रयास के बाद उन की तलाश बाबू सिंह पर जा कर खत्म हुई.
बाबू सिंह कानपुर शहर में पनकी गंगागंज (भाग एक) की ईडब्लूएस कालोनी में रहता था. वह मूल निवासी तो औरैया के गांव धुवखरी का था, लेकिन सालों पहले कानपुर आ गया था. 3 भाइयों में वह सब से बड़ा था. कानुपर शहर में वह फेरी लगा कर चटाई व पायदान बेचता था. इस धंधे में उस की अच्छी कमाई थी. मातापिता गांव में रहते थे और खेतीबाड़ी से गुजारा करते थे.