अपहरण के इस मामले में उस ने उस समय 2 करोड़ की फिरौती वसूली थी. यह 1992 की बात है. उस समय 2 करोड़ की रकम बहुत बड़ी होती थी. उस की इस वसूली पर इलाके में सनसनी फैल गई थी.
इस के बाद अपराध की दुनिया में जीवा का भी नाम हो गया. कहते हैं न कि बदनाम हुए तो क्या हुआ, नाम तो हो ही गया. ऐसा ही जीवा के साथ भी हुआ. लोग जानने लगे की इलाके में संजीव जीवा नाम का भी कोई बदमाश है, जो बड़ेबड़े लोगों का अपहरण कर के फिरौती में मोटी रकम वसूलता है.
जीवा का छुटभैया बदमाशों का गैंग था, जिन की बदौलत वह फिरौती, रंगदारी आदि वसूलता था और जमीनों पर कब्जा करता था. लेकिन कोलकाता वाले अपहरण के बाद वह मुजफ्फरनगर के गिनेचुने बदमाशों में गिने जाने वाले नाजिम गैंग में शामिल हो गया. कुछ दिन इस गैंग के साथ काम करने के बाद जीवा को रविप्रकाश नाम के गैंगस्टर ने अपनी गैंग में शामिल कर लिया.
तमाम गैंगों में होने लगी जीवा की मांग
रविप्रकाश के गैंग में शामिल होने के बाद जीवा की गिनती बड़े बदमाशों में होने लगी. अब वह रंगदारी वसूलने के साथसाथ हथियारों की हेराफेरी भी करने लगा था. क्योंकि हथियारों की सप्लाई से भी अच्छी कमाई होती थी और जीवा को पैसा कमाना था, इसलिए पैसे के लिए वह कुछ भी करने को तैयार था.
गैंगस्टर रविप्रकाश के गैंग में रह कर जीवा ने कुछ बहादुरी वाले कारनामे किए तो उसी इलाके के रविप्रकाश से भी बड़े गैंगस्टर सत्येंद्र बरनाला ने संजीव जीवा को बुला कर अपने गैंग में शामिल कर लिया. जिस तरह प्राइवेट नौकरियों में जिन का नाम हो जाता है, उन्हें दूसरी कंपनियां ज्यादा पैसे का औफर दे कर अपने यहां बुला लेती हैं, वैसा ही इन गैंगस्टरों के बीच भी होता है.