मुखबिर के जरिए एसटीएफ को पक्की सूचना मिली थी कि विनोद सुलतानपुर के रास्ते प्रयागराज भागने की कोशिश में है. सूचना मिलते ही डीएसपी सिंह भी सुलतानपुर पहुंच चुके थे और टीम के साथ उसे हनुमानगंज गोपालपुरवा इलाके में घेर लिया.
खुद को पुलिस टीम से घिरा देख माफिया विनोद पसीना पसीना हो गया और किसी कीमत पर पुलिस के हाथों चढऩा नहीं चाहता था. उस ने पुलिस के ऊपर स्टेनगन से फायर झोंक दिया. इंसपेक्टर हेमंत सिंह और हैडकांस्टेबल शशिकांत बालबाल बचे. एसटीएफ ने भी अपनी सुरक्षा में जबावी काररवाई शुरू कर दी.
गोलियों की तड़तड़ाहट से पूरा इलाका थर्रा उठा था जैसे दीपावली की आतिशबाजी हो रही हो. गोलियों की आवाज सुन कर गांव वालों की नींद टूट गई थी. वे यह नहीं समझ पा रहे थे कि रात के समय कौन आतिशबाजी कर रहा है.
इधर जब दूसरी ओर से फायरिंग होनी बंद हुई, तब एसटीएफ सावधानी बरतते हुए दबेपांव मिट्टी के टीले के पीछे पहुंची तो देखा हाथ में स्टेनगन लिए माफिया विनोद लुढ़का पड़ा था. पुलिस विनोद के पास पहुंची तो देखा कि गोलियों से उस का जिस्म छलनी हो चुका था, लेकिन अभी भी उस की हलकी हलकी सांसें चल रही थीं.
एसटीएफ ने तुरंत सरकारी एंबुलेंस को फोन कर मौके पर बुलाया और उसे सरकारी अस्पताल ले गए, जहां डाक्टरों ने देखते ही मृत घोषित कर दिया था.
उत्तर प्रदेश के गोरखपुर का रहने वाला माफिया विनोद कुमार उपाध्याय पिछले 17 सालों से आतंक का पर्याय बना हुआ था. वह बहुजन समाज पार्टी के बैनर तले विधायक का चुनाव भी लड़ चुका था. राज्य के टौप टेन अपराधियों में शुमार था, जिस की गोरखनाथ थाने में हिस्ट्रीशीट नंबर-1 बी दर्ज थी.