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सियासत में वर्चस्व की सनक

बात 25 जनवरी, 2005 की है. इलाहाबाद शहर पश्चिमी के बसपा विधायक राजू पाल 2 गाडिय़ों क्वालिस और स्कौर्पियो के काफिले के साथ एसआरएन हौस्पिटल से वापस अपने घर नीवा लौट रहे थे. क्वालिस गाड़ी वह खुद ड्राइव कर रहे थे. रास्ते में उन के दोस्त सादिक की पत्नी रुखसाना मिली. पाल ने उन्हें अपने गाड़ी की आगे वाली सीट पर बैठा लिया. पीछे वाली सीट पर संदीप यादव और देवीलाल बैठे थे. दूसरी गाड़ी स्कौर्पियो पीछे चल रही थी. उस में 4 लोग बैठे थे.

दोनों गाडिय़ों का काफिला जैसे ही सुलेमसराय के जीटी रोड पर आया और कुछ दूर तक गया ही था कि तभी बगल से तेज रफ्तार से आई मारुति वैन पाल की गाड़ी को ओवरटेक करते हुए एकदम सामने आ कर खड़ी हो गई. अचानक हुई इस घटना से राजू पाल की गाड़ी सडक़ किनारे बांसबल्ली की दुकान से जा भिड़ी.

सामने खड़ी मारुति वैन से 5 लोग धड़ाधड़ उतरे और पाल की गाड़ी पर अंधाधुंध फायरिंग शुरू कर दी. उन में 3 ने पाल की गाड़ी को घेर कर फायरिंग शुरू कर दी, जबकि 2 काफिले की दूसरी गाड़ी पर फायरिंग करने लगे. उन्होंने किसी को भी गाड़ी से बाहर निकलने का मौका नहीं दिया.

इस ताबड़तोड़ फायरिंग में राजू पाल की मौत हो गई. राजू पाल हत्याकांड की जांच हुई, जिस में अतीक अहमद का नाम आया. वह इस मामले में मुख्य आरोपी के रूप में नामित और गिरफ्तार किया गया था, लेकिन बाद में उसे जमानत मिल गई थी. बताते हैं कि वह जेल के अंदर से भी अंडरवल्र्ड में अपनी सत्ता बनाए रखने में सक्षम था.

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