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‘‘नाई हैं हम साहब. गुलफ्शा को मैं ने अपने बारे में सब बता रखा था. वह मुझे पसंद करती थी, उस ने कभी मेरी जाति को ले कर सवाल नहीं किया. लेकिन उस के घर वाले इस निकाह के सख्त खिलाफ थे. वे नहीं चाहते थे कि गुलफ्शा मुझ से मिले.

‘‘उस के भाई तौहीद ने मुझे गुलफ्शा के साथ मिलते 2-3 बार देखा था. उस ने मेरे सामने गुलफ्शा को पीटा था और मुझे भी 2-3 थप्पड़ जड़ दिए थे. मुझे वह धमकी भी देता था कि अगर मैं ने गुलफ्शा का पीछा नहीं छोड़ा तो वह मुझे जान से मार देगा.’’

‘‘कल तुम गुलफ्शा से मिले थे?’’ श्री राठी ने पूछा.

‘‘हां, गुलफ्शा ने मुझे फोन कर के यहां इसलामपुर के एक रेस्टोरेंट में बुलाया था. वह बहुत परेशान और टेंशन में थी. उस ने मुझे बताया था कि उस के लिए अब्बूअम्मी ने एक लड़का देखा है जिस से उस के निकाह की बात चल रही है. लेकिन वह यह निकाह नहीं करेगी, वह मुझ पर दबाव बना रही थी कि मैं उसे ले कर भाग चलूं.

‘‘लेकिन सर, मैं इस के लिए तैयार नहीं था. मैं ने गुलफ्शा को प्यार से समझाया कि हम निकाह करेंगे. भाग कर नहीं बल्कि समाज के सामने. मेरे समझाने पर गुलफ्शा खुशीखुशी घर लौट गई थी. लेकिन सर रात में कोई... और कोई क्यों सर, उस के घर वालों ने ही उसे मार डाला. उस की जान ले ली.’’

समीर फिर सुबकने लगा. श्री राठी ने उस के कंधे पर प्यार से हाथ रखा, ‘‘यानी तुम्हारा गुलफ्शा की हत्या में कोई हाथ नहीं है?’’

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