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रामू की इस करतूत से पूरा परिवार हैरान रह गया था. यह कोई अच्छी बात नहीं थी, इसलिए मां ने ही नहीं, भाइयों ने भी रामू को रोका. मारपीट भी की, लेकिन रामू नहीं माना तो नहीं माना. कुसुमा से उसे जो सुख मिलता था, उस की चाहत में वह उस के पास पहुंच ही जाता था. परेशान हो कर एक दिन शांति कुसुमा के घर जा पहुंची और उसे बुराभला कहने लगी.

तब कुसुमा ने कहा, ‘‘काकी, मैं तुम्हारे बेटे को बुलाने नहीं जाती, वह खुद ही मेरे पास आता है. तुम उसी को क्यों नहीं रोक लेती. अब तुम्हारे ही घर कोई आएगा, तो क्या तुम उसे भगा दोगी? तुम उसे तो रोकती नहीं, मुझे बेकार में बदनाम करने चली आई.’’

शांति चुपचाप घर लौट आई. उसी बीच मुकेश गांव आया तो किसी ने उस से रामू और कुसुमा के संबंधों के बारे में बताया. उस ने इस बारे में कुसुमा से पूछा तो रोते हुए उस ने कहा, ‘‘मैं कब से कह रही हूं कि तुम मुझे अपने साथ ले चलो. बीवी को इस तरह गांव में अकेली छोड़ोगे तो दिलजले लोग ऐसी ही बातें करेंगे.’’

मुकेश को लगा कि कुसुमा सच कह रही है, इसलिए उस की बात पर विश्वास कर के वह निश्चिंत हो कर दिल्ली चला गया. लेकिन अब मुकेश जब भी घर आता, गांव का कोई न कोई आदमी कुसुमा और रामू को ले कर उसे जरूर टोकता. इन बातों से उसे लगने लगा कि कुछ न कुछ जरूर गड़बड़ है. इस के बाद उस ने कुसुमा को मारपीट कर धमकाया कि अब अगर उस ने उस के बारे में कुछ सुना तो वह उसे उस के मायके पहुंचा देगा. यही नहीं, उस ने शांति के घर जा कर उस से भी कहा कि वह रामू को रोके अन्यथा ठीक नहीं होगा.

इस पर जलीभुनी शांति ने कहा, ‘‘मैं खुद ही तुम्हारी पत्नी से परेशान हूं. इस के लिए मैं पंचायत बुलाने वाली हूं.’’

शांति की इस धमकी से मुकेश परेशान हो गया. अगर शांति ने पंचायत बुलाई तो गांव में उस की इज्जत का जनाजा निकल जाएगा. नाराज और दुखी मुकेश ने सारा गुस्सा और क्षोभ घर आ कर कुसुमा की पिटाई कर के निकाला.

अगले दिन शांति ने पंचायत बुलाई, जिस में मुकेश और कुसुमा को भी बुलाया गया. पंचायत में कुसुमा ने साफ कहा कि रामू से उस का कोई संबंध नहीं है. इस बात को ले कर उसे बेकार ही गांव में बदनाम किया जा रहा है.

पंचों ने जब मुकेश से कुछ कहना चाहा तो उस ने कहा, ‘‘मैं इस मामले में कुछ नहीं कर सकता, क्योंकि कुसुमा अब मेरे वश में नहीं है.’’

पंचायत बिना किसी फैसले के ही खत्म हो गई. मुकेश दूसरे दिन शाम को दिल्ली चला गया. इस पंचायत के बाद मोहल्ले का हर आदमी कुसुमा को अपना दुश्मन नजर आने लगा. इसलिए वह मोहल्ले के हर आदमी से पंगा ले कर उस की ऐसीतैसी करने लगी. उस की इस हरकत से हर कोई उस से घबराने लगा. अब किसी की हिम्मत उस से कुछ कहने की नहीं पड़ती थी. इस के बाद उस की और रामू की मोहब्बत की गाड़ी आराम से चलने लगी. डर के मारे मोहल्ले वालों ने उन की ओर से आंखें मूंद लीं.

शांति रामू को कुसुमा से किसी भी तरह अलग नहीं कर पाई तो उस ने सोचा कि रामू की शादी कर दे. नईनवेली दुलहन पा कर वह खुद ही कुसुमा का पीछा छोड़ देगा. उस ने रामू के लिए लड़कियां देखनी शुरू कर दीं. जल्दी ही उस ने जिला मैनपुरी के थाना एलांद के गांव सुशनगढ़ी के रहने वाले मान सिंह की बेटी सुमन से उस की शादी तय कर दी.

कुसुमा को जब पता चला कि रामू की शादी तय हो गई है तो वह सुलग उठी. वह किसी भी कीमत पर यह शादी नहीं होने देना चाहती थी. भला वह कैसे चाहती कि उस का प्रेमी किसी से शादी कर के उसे सुलगने के लिए छोड़ दे. इसलिए उस ने रामू से साफसाफ कह दिया कि अगर उस ने यह शादी की तो वह जान दे देगी.

‘‘शादी के बाद भी मैं तुम्हारा ही रहूंगा भाभी. मां बहुत परेशान हैं. मैं अब उसे और दुखी नहीं कर सकता.’’ रामू ने कुसुमा को समझाना चाहा.

‘‘वाह, क्या बात कही है? तुम्हारी वजह से मैं कितनी बदनामी झेल रही हूं, तुम्हें पता है. लोग मुझे चरित्रहीन कहते हैं. अब बीच मंझधार में तुम मुझे छोड़ कर किसी और का होना चाहते हो. कान खोल कर सुन लो, जीते जी मैं ऐसा कभी नहीं होने दूंगी.’’ कुसुमा ने चेतावनी दी.

रामू घर वालों के बारे में सोच रहा था कि वह घर वालों को क्या जवाब दे. तभी कुसुमा ने उस का हाथ पकड़ कर कहा, ‘‘चलो, हम कहीं दूर भाग चलते हैं. अगर तुम ने ऐसा नहीं किया तो मेरा मरा मुंह देखोगे.’’

कुसुमा के तेवर देख कर रामू को यकीन हो गया कि अगर उस ने शादी कर ली तो कुसुमा सचमुच आत्महत्या कर लेगी. तब वह फंस सकता है. काफी सोचसमझ कर उस ने गहरी सांस ले कर कहा, ‘‘ठीक है, तुम तैयारी करो. मैं तुम्हें साथ ले कर भागने को तैयार हूं.’’

1 जून, 2013 को रामू की शादी होनी थी. दोनों ओर जोरशोर से शादी की तैयारियां चल रही थीं. शादी की तारीख से 2 दिन पहले रामू घर से गायब हो गया. रामू का गायब होना घर वालों के लिए सदमे की तरह था. उन के लिए परेशानी यह थी कि वे लड़की वालों को क्या जवाब देंगे. रिश्तेदारों को कौन सा मुंह दिखाएंगे. क्योंकि अब तक कार्ड भी बंट गए थे.

कुसुमा भी घर से गायब थी, इसलिए सब को पूरा यकीन था कि जहां भी हैं, दोनों एक साथ हैं. सब से बड़ी परेशानी यह थी कि लड़की वालों को कैसे समझाया जाए. शांति बेटे मनोज को ले कर सुशनगढ़ी पहुंची. जब उस ने मान सिंह को सारी बात बताई तो उस ने अपना सिर पीट लिया. उस की बेटी का क्या होगा, कौन करेगा उस से शादी? लोग पूछेंगे कि शादी क्यों टूटी तो वह क्या जवाब देगा?

मान सिंह को इस तरह परेशान देख कर शांति ने कहा, ‘‘हम बहुत शर्मिंदा हैं समधीजी. अब इज्जत बचाने का एक ही रास्ता है. अगर आप मान जाएं तो सब ठीक हो जाएगा.’’

‘‘कौन सा रास्ता?’’ मान सिंह ने पूछा.

‘‘मेरे बेटे शिवशंकर को तो आप ने देखा ही है. वह बहुत ही नेक है. कमाताधमाता भी ठीकठाक है. वह आप की बेटी को खुश रखेगा. अगर आप तैयार हों तो…?’’

मान सिंह के पास उन की बात मानने के अलावा दूसरा कोई विकल्प नहीं था. उस ने उदास मन से कहा, ‘‘ठीक है, इज्जत बचाने के लिए शिवशंकर से ही सुमन की शादी कर देता हूं.’’

इस के बाद शिवशंकर ने चुपचाप मां की बात मान ली तो 1 जून, 2013 को सुमन से उस की शादी हो गई. इस तरह उस ने 2 परिवारों की इज्जत बचा ली.

11 जून, 2013 को रामू और कुसुमा लौट आए. पत्नी की इस हरकत की जानकारी दिल्ली में रह रहे मुकेश को भी हो गई थी. लेकिन वह हालात के सामने हारा हुआ था. इसलिए चुप्पी साधे दिल्ली में ही पड़ा रहा.

सप्ताह भर बाद रामू घर लौटा तो सभी ने उसे

खूब खरीखोटी सुनाई. इस पर उस ने कहा, ‘‘मैं सुमन को धोखा नहीं देना चाहता था, इसलिए मैं कुसुमा के साथ चला गया था.’’

शांति ने सोचा, जो होता है, वह अच्छा ही होता है.

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