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सुरेंद्र मोनिका से नजदीकी बढ़ाने की हरसंभव कोशिश कर रहा था. उस की बांछें तब खिलीं, जब मोनिका की ड्यूटी उस के साथ ही पीसीआर वैन में लगा दी गई. फिर तो सुरेंद्र की इस दोस्ती में अब इंद्रधनुषी रंग भरने का वक्त आ गया था.

सुरेंद्र राणा अब सारा दिन पीसीआर वैन में साथ रहने वाली मोनिका को अपने दिल के करीब ला सकता था, उस के दिल में प्यार के फूल खिला सकता था. वह मोनिका को रिझाने के लिए उसे कोई महंगा तोहफा देना चाहता था. शाम को वह कनाट प्लेस गया और पालिका बाजार से लाल रंग का खूबसूरत लेडीज पर्स खरीद लाया.

दूसरे दिन मोनिका जब ड्यूटी पर आई तो सुरेंद्र राणा ने बगैर किसी भूमिका के अखबार में लिपटा पर्स मोनिका की तरफ बढ़ाते हुए कहा, “लो मोनिका, यह मैं तुम्हारे लिए लाया हूं.”

“क्या है इस अखबार में?”

“खोल कर देख लो.”

मोनिका ने अखबार हटाया तो खूबसूरत पर्स देख कर हैरान हो गई, “आप यह पर्स मेरे लिए लाए हैं.”

“मोनिका, मेरे घर में मेरी बूढ़ी मां के अलावा कोई नहीं है तो जाहिर सी बात है कि यह पर्स मैं ने तुम्हारे लिए ही खरीदा है.” सुरेंद्र झूठ बोला.

“अरे!” मोनिका इस बार चौंक कर सुरेंद्र का चेहरा देखने लगी.

“ऐसे क्यों देख रही हो मोनिका?”

“आप कह रहे हैं, घर में बूढ़ी मां है. आप की पत्नी कहां गई है?”

“मेरी शादी नहीं हुई है मोनिका.” सुरेंद्र राणा ने सफेद झूठ बोला, “मैं अभी तक कुंवारा हूं.”

“कमाल है! आप की शादी की उम्र तो निकल गई, आप ने अभी तक शादी क्यों नहीं की?” मोनिका ने हैरानी से पूछा.

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