संतोष और रेखा मिलते तो थे सब की नजरें बचा कर, लेकिन उन के हावभाव से रमा को उन पर शक हो गया. इस की एक वजह यह थी कि रमा को अपने पति की फितरत पता थी. उस ने रेखा को अपने घर में रखने से मना किया तो संतोष ने उसे अपने मामा चंद्रपाल के यहां बेलहिया पहुंचा दिया. अपनी होने वाली ससुराल देख कर और होने वाले पति से मिल कर रेखा खुश थी.
संतोष ने वहां पहुंच कर चंद्रपाल से कहा था, ‘‘मामा, तुम्हारी होने वाली बहू ले आया हूं. कुछ दिन रख कर देख लो. मैं 10 दिन बाद अंबाला जाऊंगा, तब इसे साथ ले जाऊंगा.’’
चंद्रपाल ने रेखा को अपने घर में रख लिया. रामकुमार अपनी होने वाली पत्नी से बातचीत तो करता था, लेकिन संतोष की तरह कभी उस के नजदीक जाने की कोशिश नहीं की थी. वह सोचता था कि जो काम शादी के बाद होता है, उसे शादी के बाद ही होना चाहिए.
रेखा को मामा के यहां छोड़ कर संतोष अपने घर तो लौट गया, लेकिन जल्दी ही उसे रेखा की याद सताने लगी. 2-3 दिन तो उस ने किसी तरह बिताए, लेकिन जब उस से नहीं रहा गया तो वह मामा के घर आ गया. रेखा चंद्रपाल के यहां घर के अंदर वाले कमरे में लेटती थी, जबकि रामकुमार अपनी मां जनकदुलारी के साथ वाले कमरे में सोता था. संतोष के सोने की व्यवस्था रामकुमार वाले कमरे में की गई थी.
रात में जब संतोष को लगा कि रामकुमार सो गया है तो वह चुपके से उठा और रेखा के कमरे में जा पहुंचा. रेखा ने उसे मना किया तो उस ने कहा, ‘‘यहां सभी घोड़े बेच कर सो रहे हैं, इसलिए चिंता करने की कोई जरूरत नहीं है. तुम्हें पता होना चाहिए कि इतनी दूर मैं सिर्फ तुम से मिलने आया हूं.’’