पश्चिम बंगाल के जिला 24 परगना के थाना गोपालनगर के गांव पावन के रहने वाले प्रभात विश्वास गांव में रह कर खेती करते थे. पत्नी, 2 बेटों और एक बेटी के उन के परिवार का गुजरबसर इसी खेती की कमाई से होता था. उसी की कमाई से वह बच्चों को पढ़ालिखा भी रहे थे और सयानी होने पर बेटी की शादी भी कर दी थी.
प्रभात ने बेटी प्रीति की शादी अपने ही जिले के गांव चलमंडल के रहने वाले श्रवण विश्वास के साथ की थी. श्रवण विश्वास झोला छाप डाक्टर था, जो चांदसी दवाखाना के नाम से उत्तर प्रदेश के जिला आगरा के थाना वाह के कस्बा जरार में अपनी क्लिनिक चलाता था.
श्रवण की क्लिनिक बढि़या चल रही थी, इसलिए उस से प्रेरणा ले कर प्रभात विश्वास का बड़ा बेटा प्रवीण भी बहनोई की तरह झोला छाप डाक्टर बनने के लिए पढ़ाई के साथसाथ किसी डाक्टर के यहां कंपाउंडरी करने लगा था. ग्रेजुएशन करतेकरते वह डाक्टरी के काफी गुण सीख गया तो बहनोई की तरह अपनी क्लिनिक खोलने के बारे में सोचने लगा.
क्लिनिक खोलने की पूरी तैयारी कर के प्रवीण आगरा के कस्बा जरार में क्लिनिक चला रहे अपने बहनोई श्रवण के पास आ गया. कुछ दिनों तक बहनोई के साथ काम करने के बाद जब उसे लगा कि अब वह खुद क्लिनिक चला सकता है तो वह अपनी क्लिनिक खोलने के लिए स्थान खोजने लगा.
प्रवीण के एक परिचित पी.के. राय आगरा के ही कस्बा रुनकता में क्लिनिक चलाते थे. उन्हीं की मदद से उस ने रुनकता में एक दुकान ले कर बंगाली दवाखाना के नाम से क्लिनिक खोल ली. रहने के लिए हाजी मुस्तकीम के मकान में 8 सौ रुपए महीने किराए पर एक कमरा ले लिया. मुस्तकीम का अपना परिवार सामने वाले मकान में रहता था. उस मकान में केवल किराएदार ही रहते थे. डा. प्रवीण का कमरा अन्य किराएदारों से एकदम अलग था.
प्रवीण विश्वास दिन भर अपनी क्लिनिक पर रहता था और रात को कमरे पर आ जाता. अकेला होने की वजह से उसे अपने सारे काम खुद ही करने पड़ते थे. वह जिस हिसाब से मेहनत कर रहा था, उस हिसाब से उस की कमाई नहीं हो रही थी. इसलिए अपने हालात से वह खुश नहीं था. लेकिन उस का व्यवहार ऐसा था कि उस से हर कोई खुश रहता था.
इस के बावजूद प्रवीण की किसी से दोस्ती नहीं हो पाई थी. इस की वजह शायद यह भी थी कि वह एक ऐसे प्रांत का रहने वाला था, जहां का खानपान, रहनसहन और बात व्यवहार सब कुछ वहां के रहने वालों से अलग था.
इस स्थिति में प्रवीण थोड़ा परेशान सा रहता था. एक दिन वह किसी सोच में डूबा था कि उस के फोन की घंटी बजी. उस का फोन डुअल सिम वाला था. एक सिम उस ने आगरा के नंबर का डाल रखा तो दूसरा सिम 24 परगना के नंबर का था. वैसे यहां 24 परगना वाले नंबर की कोई जरूरत नहीं थी, लेकिन उस ने अपना पुराना नंबर इसलिए बंद नहीं किया था कि घर जाने पर शायद इस की जरूरत पड़े.
घंटी बजी तो प्रवीण की नजर मोबाइल के स्क्रीन पर गई. फोन 24 परगना वाले सिम के नंबर पर आया था. स्क्रीन पर जो नंबर उभरा था, वह भी 24 परगना का ही लग रहा था. प्रवीण ने जल्दी से फोन रिसीव कर लिया, ‘‘हैलो, कौन…?’’
उस के हैलो कहते ही दूसरी ओर से किसी लड़की ने मधुर आवाज में कहा, ‘‘सौरी, गलती से आप का नंबर लग गया.’’
प्रवीण कुछ कहता, उस के पहले ही फोन कट गया. लड़की की आवाज ऐसी थी, जैसे किसी ने कान में शहद घोल दिया है. प्रवीण का मन एक बार फिर उस की आवाज सुनने के लिए होने लगा. आवाज पलट कर फोन कर के ही सुनी जा सकती थी. लेकिन यह ठीक नहीं था. इसलिए वह सोचने लगा कि फोन करने पर लड़की बुरा मान सकती है. लेकिन मन नहीं माना तो डरतेडरते उस ने पलट कर फोन कर ही दिया.
दूसरी ओर से फोन रिसीव कर के लड़की ने कहा, ‘‘अपनी गलती के लिए मैं ने सौरी तो कह दिया. अब कितनी बार माफी मांगूं?’’
‘‘आप गलत सोच रही हैं. मैं ने आप को फोन इसलिए नहीं किया कि आप दोबारा माफी मांगें. आप की आवाज मुझे बहुत प्यारी लगी, उसे सुनने के लिए मैं ने फोन किया है. मैं आप की आवाज सुनना चाहता हूं. इसलिए आप कुछ अपनी कहें और कुछ मेरी सुनें.’’
प्रवीण का इतना कहना था कि उस के कानों में खिलखिला कर हंसने की आवाज पड़ी. प्रवीण खुश हो गया कि लड़की ने उस की इस हरकत का बुरा नहीं माना. हंसी रोक कर उस ने कहा, ‘‘तो यह क्यों नहीं कहते कि आप मुझ से दोस्ती करना चाहते हैं.’’
‘‘यही समझ लीजिए,’’ प्रवीण ने कहा, ‘‘आप को मेरा प्रस्ताव मंजूर है?’’
‘‘क्यों नहीं, बातचीत से तो आप अच्छेखासे पढे़लिखे लगते हैं?’’
‘‘जी, मैं डाक्टर हूं.’’
‘‘कहां नौकरी करते हैं?’’ लड़की ने पूछा.
‘‘नौकरी नहीं करता, मेरी अपनी क्लिनिक है.’’
‘‘तब तो मैं आप को अपना दोस्त बनाने को तैयार हूं.’’
इस तरह दोनों में दोस्ती हो गई तो बातचीत का सिलसिला चल पड़ा. प्रवीण 24 परगना का रहने वाला था तो वह लड़की भी वहीं की रहने वाली थी. लड़की ने अपना नाम मल्लिका बताया था. लेकिन सब उसे मोनिका कह कर बुलाते थे. प्रवीण ने भी उसे अपना नाम बता दिया था.
दोनों की ही भाषा बंगाली थी, इसलिए दोनों अपनी भाषा में बात करते थे. प्रवीण ने मल्लिका को यह भी बता दिया था कि वह रहने वाला तो 24 परगना का है, लेकिन उस की क्लिनिक उत्तर प्रदेश के आगरा के एक कस्बे में है.
धीरेधीरे दोनों में लंबीलंबी बातें होने लगीं. इसी तरह 6 महीने बीत गए. प्रवीण ने मल्लिका को अपने बारे में काफी कुछ बता दिया था, लेकिन मल्लिका ने अपने बारे में कभी कुछ नहीं बताया था. वह प्रवीण के लिए रहस्य बनी रही.
प्रवीण ने जब उस पर दबाव डाला तो एक दिन उस ने कहा, ‘‘यही क्या कम है कि मैं तुम से प्यार करती हूं. बस तुम मुझे अपनी प्रेमिका के रूप में जानो.’’
मल्लिका ने जब कहा कि वह उस से प्यार करती है तो प्रवीण ने कहा, ‘‘मैं तुम से मिलना चाहता हूं.’’
‘‘यह तो बड़ी अच्छी बात है. मैं भी तुम से मिलना चाहती हूं. तुम्हारी जब इच्छा हो, आ जाओ. समझ लो मैं तुम्हारा इंतजार कर रही हूं.’’ मल्लिका ने कहा.
मल्लिका का इस तरह आमंत्रण पा कर प्रवीण फूला नहीं समाया. वह इस बात पर विचार करने लगा कि मल्लिका को अपनी जिंदगी में आने के लिए तैयार कैसे करे. अब वह सपनों में जीने लगा था. इस तरह के सपनों की दुनिया बहुत ही रंगीन और हसीन होती है. उस ने अपने प्यार को कल्पनाओं का रंग दे कर एक खूबसूरत चेहरे का अक्स बना लिया था. हर वक्त वह उसी में खोया रहता था. वह 24 परगना जा कर मल्लिका से मिलना चाहता था, लेकिन मौका नहीं मिल रहा था.