जब मल्लिका की बातों ने उसे प्यार में पागल कर दिया तो कामधाम छोड़ कर प्रवीण 24 परगना जा पहुंचा. मल्लिका को उस ने अपने आने की सूचना दे दी थी, इसलिए घर पहुंचते ही उस ने मल्लिका से मिलने का स्थान और समय तय कर लिया.
मल्लिका ने उसे अगले दिन 24 परगना के बसस्टाप पर दोपहर को बुलाया था. प्रवीण तय जगह पर खड़ा इधरउधर देख रहा था. थोड़ी देर में उसे एक खूबसूरत औरत आती दिखाई दी. वह मन ही मन सोचने लगा कि अगर यही मल्लिका होती तो कितना अच्छा होता.
प्रवीण उस औरत को एकटक ताकते हुए मल्लिका के बारे में सोच रहा था कि तभी वह औरत फोन निकाल कर किसी को फोन करने लगी. प्रवीण के फोन की घंटी बजी तो उस का दिल धड़क उठा. उस ने जल्दी से फोन रिसीव किया तो दूसरी ओर से पूछा गया, ‘‘कहां हो तुम?’’
‘‘तुम्हारे सामने ही तो खड़ा हूं.’’ प्रवीण के मुंह से यह वाक्य अपने आप निकल गया.
कान से फोन लगाए हुए ही उस औरत ने मुसकराते हुए कहा, ‘‘तो तुम हो प्रवीण?’’
‘‘हां, मैं ही प्रवीण हूं, जिसे तुम इतने दिनों से तड़पा रही हो.’’
‘‘अब तड़पने की जरूरत नहीं है. क्योंकि मैं तुम्हारे सामने खड़ी हूं.’’
मल्लिका को देख कर प्रवीण फूला नहीं समाया, क्योंकि उस ने अपने ख्वाबों में मल्लिका की जो तसवीर बनाई थी, वह उस से कहीं ज्यादा खूबसूरत थी. वह लग भी ठीकठाक परिवार की रही थी.
‘‘यहीं खड़े रहोगे या चल कर कहीं एकांत में बैठोगे.’’ मल्लिका ने कहा तो प्रवीण को होश आया.
प्रवीण उसे एक रेस्टोरैंट में ले गया. चायनाश्ते के साथ बातचीत शुरू हुई तो मल्लिका ने गंभीरता से कहा, ‘‘प्रवीण, तुम सचसच बताना, मुझे कितना प्यार करते हो और मेरे लिए क्या कर सकते हो?’’
‘‘अगर प्यार करने की कोई नापतौल होती तो नापतौल कर बता देता. बस इतना समझ लो कि मैं तुम्हें जान से भी ज्यादा प्यार करता हूं. अब इस से ज्यादा क्या कह सकता हूं.’’ प्रवीण ने मल्लिका के हाथ पर अपना हाथ रख कर कहा.
‘‘जब तुम मुझे इतना प्यार करते हो तो मुझे भी अब तुम्हें अपने बारे में सब कुछ बता देना चाहिए, क्योंकि मैं ने अभी तक तुम्हें अपने बारे में कुछ नहीं बताया है. प्रवीण मैं शादीशुदा ही नहीं, मेरा 10 साल का एक बेटा भी है. मेरा पति कुवैत में रहता है, जिस की वजह से हमारी मुलाकातें 2 साल में सिर्फ कुछ दिनों के लिए हो पाती हैं. मैं यहां सासससुर के साथ रहती हूं. पति के उतनी दूर रहने की वजह से प्यार के लिए तड़पती रहती हूं.’’
मल्लिका की सच्चाई जानसुन कर प्रवीण सन्न रह गया. जैसे किसी ने उसे आसमान से जमीन पर पटक दिया हो. जिसे वह जान से ज्यादा प्यार करता था, वह किसी और की अमानत थी, यह जान कर उस के मुंह से शब्द नहीं निकले. उस की हालत देख कर मल्लिका ने कहा, ‘‘तुम्हें परेशान होने की जरूरत नहीं प्रवीण. मैं भी तुम्हें उतना ही प्यार करती हूं, जितना तुम. मैं तुम्हारे लिए पति और बेटा तो क्या, यह दुनिया तक छोड़ सकती हूं.’’
प्रवीण ने होश में आ कर कहा, ‘‘सच, तुम मेरे लिए सब को छोड़ सकती हो?’’
‘‘हां, तुम्हारे लिए मैं सब को छोड़ ही नहीं सकती, जान तक दे सकती हूं, लेकिन तुम मुझे मंझधार में मत छोड़ना. तुम डाक्टर हो, इसलिए मेरे दिल का दर्द अच्छी तरह समझ सकते हो. बोलो, धोखा तो नहीं दोगे?’’ मल्लिका गिड़गिड़ाई.
मल्लिका की इस बात से प्रवीण ने थोड़ी राहत महसूस की. इस के बाद कुछ सोचते हुए बोला, ‘‘अच्छा, यह बताओ. अब तुम सिर्फ मेरी बन कर रहोगी न?’’
‘‘हां, अब मैं सिर्फ तुम्हारी ही हो कर रहना चाहती हूं, सिर्फ तुम्हारी,’’ मल्लिका ने कहा, ‘‘चलो, अब यहां से कहीं और चलते हैं.’’
प्रवीण मल्लिका को पूरी तरह अपनी बनाना चाहता था, इसलिए उस ने एक मध्यमवर्गीय होटल में कमरा बुक कराया और मल्लिका को उसी में ले गया. एकांत में होने वाली बातचीत में प्रवीण जान गया कि मल्लिका के मायके और ससुराल वाले काफी संपन्न लोग हैं. उस का पति कुवैत में नौकरी करता था. उस समय भी वह लगभग 4-5 तोले सोने के गहने पहने थी.
होटल के उस कमरे में एकांत का लाभ उठा कर प्रवीण ने मल्लिका को अपनी बना लिया. उस ने मल्लिका के बारे में तो सब कुछ जान लिया, लेकिन अपने बारे में उस ने सिर्फ इतना ही बताया था कि वह डाक्टर है और अभी उस की शादी नहीं हुई है.
प्रवीण के डाक्टर होने का मतलब मल्लिका ने यह लगाया था कि वह पढ़ालिखा होगा, इसलिए अन्य डाक्टरों की तरह यह भी खूब पैसे कमा रहा होगा. यही सोच कर वह उस के साथ रहने के बारे में सोच रही थी.
जबकि स्थिति इस के विपरीत थी. प्रवीण झोला छाप डाक्टर था. उस ने क्लिनिक जरूर खोल ली थी, लेकिन उस की कमाई से किसी तरह उस का खर्च पूरा होता था. मल्लिका के बारे में जान कर अब वह उस की बदौलत अपना भाग्य बदलने के बारे में सोच रहा था.
मल्लिका की शादी 24 परगना के थाना गोपालपुर के कस्बा चलमंडल के रहने वाले कृष्णा से हुई थी. 24 परगना शहर में उस की विशाल कोठी थी. ससुराल में मल्लिका को किसी चीज की कमी नहीं थी. कमी सिर्फ यही थी कि पति कुवैत में रहता था और वह यहां सासससुर के साथ रहती थी. वह पति के साथ रहना चाहती थी, जबकि कृष्णा उसे कुवैत ले जाने को तैयार नहीं था. उस का कहना था कि अगर दोनों कुवैत चले गए तो मांबाप यहां अकेले पड़ जाएंगे.
मल्लिका बेटे अपूर्ण में मन लगाने की कोशिश करती थी, लेकिन बेटा बड़ा हो गया तो उसे पति की कमी खलने लगी थी. उस की जवान उमंगे तनहाई में दम तोड़ने लगी थीं. उस के जिस्म की भूख उसे बेचैन करने लगी थी. ऐसे में ही उस का फोन गलती से प्रवीण के मोबाइल पर लग गया तो दोनों की दोस्ती ही नहीं हुई, अब मेलमिलाप भी हो गया था. उस के बाद उस की जैसे दुनिया ही बदल गई थी.
मुलाकात के बाद जिस्म की भूख भी बढ़ गई और प्यार भी. कुछ दिन गांव में रह कर प्रवीण वापस आ गया. अब दोनों के बीच लंबीलंबी बातें होने लगीं. मल्लिका उस के सहारे आगे की जिंदगी गुजारने के सपने देखने लगी थी. क्योंकि उसे पता था कि कृष्णा में कोई बदलाव आने वाला नहीं है, इसलिए उस की परवाह किए बगैर एक दिन उस ने प्रवीण से कहा, ‘‘भई, इस तरह कब तक चलेगा. आखिर हमें कोई न कोई फैसला तो लेना ही होगा.’’
‘‘इस विषय पर फोन पर बात नहीं हो सकती. दुर्गा पूजा पर मैं घर आऊंगा तो बैठ कर बातें करेंगे.’’ प्रवीण ने कहा और घर जाने की तैयारी करने लगा.
दुर्गा पूजा के दौरान दोनों की मुलाकात हुई तो तय हुआ कि इस बार प्रवीण आगरा जाएगा तो मल्लिका भी उस के साथ चलेगी. वहां दोनों शादी कर के आराम से रहेंगे. उस समय मल्लिका ने यह भी नहीं सोचा कि कृष्णा घरपरिवार से उतनी दूर उस के और बच्चे के सुख के लिए ही पड़ा है. अपने जिस्म की भूख मिटाने के लिए उस ने अपने 10 साल के बेटे की चिंता भी नहीं की.