सुजित के दोस्त सुरेश पर कसा शिकंजा
आखिर कुछ दिनों बाद एक छोटा सा सुराग टौम के हाथ लग गया. सुजित के दोस्तों के बारे में पता करते करते उन के सामने एक नाम आया सुरेश का. वह सुजित का खास दोस्त था. वह आटो चलाता था. पता चला था कि जिन दिनों शकुंतला गुम हुई थीं, उन दिनों वह शकुंतला के घर 2-3 बार दिखाई दिया था. एक बार तो रात 2 बजे वह शकुंतला के घर के पास आटो ले कर जाते हुए दिखाई दिया था और उस समय उस के आटो में कोई बड़ा सामान भी था.
टौम के लिए इतनी जानकारी पर्याप्त थी. उन्होंने तत्काल सुरेश को उठा लिया और थाने ला कर पूछताछ शुरू कर दी, “सुरेश, तुम सुजित को पहचानते थे?”
“जी, वह मेरा दोस्त था. बहुत भला आदमी था. बेचारा चला गया.” सुरेश ने जवाब में कहा.
“वह भला था या बुरा, यह मैं तय कर लूंगा. तुम सिर्फ उसी बात का जवाब दो, जो मैं पूछूं और दूसरी बात यह कि अब सुजित जीवित नहीं है, इसलिए उस के सभी गुनाहों की सजा तुझे अकेले ही भोगनी है, यह सोच कर जवाब देना. सच बोलोगे तो सजा कम हो सकती है, वरना भोगोगे.”
सुरेश को पसीना आ गया. टौम ने पूछा, “तुम शकुंतला को जानते थे?”
“नहीं. कौन शकुंतला?” सुरेश ने कहा.
इसी के साथ उस के बाएं गाल पर 2 तमाचे पड़े. तमाचे इतने जोरदार थे कि उस की आंखों के सामने सितारे नाचने लगे तो कानों में भंवरे गुनगुनाने लगे. टौम ने कहा, “अभी तो सिर्फ भंवरे ही गुनगुना रहे हैं. सच नहीं बोला तो शेर और बाघ की गर्जना सुनाई देगी. मैं उस शकुंतला की बात कर रहा हूं, तुम आटो ले कर जिस के घर के चक्कर लगा रहे थे. जिसे तुम ने और सुजित ने मिल कर मार डाला. उस के बाद सीमेंट और कंक्रीट के साथ भर कर सरोवर में फेंक दिया. याद आया... हत्यारा कहीं का.”