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दीपक और बरखा हद से ज्यादा डूब चुके थे प्यार में

धीरेधीरे समय बीतता रहा. दीपक के दिल में प्रेमिका बनी बरखा के प्रति चाहत और बढ़ गई. यह चाहत उस रोज और बढ़ गई, जब बरखा ने एक रोज अंतरंग क्षणों में दीपक से कहा कि उस के पति और मोहल्ले वालों को उन के प्यार की भनक लग गई है. इस से पहले कि उन के प्यार पर पहरे लगा दिए जाएं, उन दोनों को भाग कर अपनी नई दुनिया बसा लेनी चाहिए.

“पर भाभी यह कैसे हो सकता है?” दीपक सोच में पड़ गया.

“क्या तुम मुझ से प्यार नहीं करते?” बरखा दीपक से लिपट कर उस का मुंह चूमने लगी.

“प्यार तो अपनी जान से ज्यादा करता हूं तुम्हें भाभी.”

“तो अब यह तुम जानो कि मुझे पाने के लिए तुम्हें क्या करना चाहिए. बस इतना जान लो कि मैं तुम्हारे बगैर नहीं रह सकती. अगर तुम मुझे न मिले तो जमाने के तानों से तंग आ कर मैं अपनी जान भी दे दूंगी. फिर मेरे मुर्दा शरीर से प्यार करते रहना.”

“ऐसा मत बोलो भाभी. तुम चली गईं तो मैं ही जी कर क्या करूंगा,” दीपक ने जवाब दिया.

कृष्णकांत को दीपक और बरखा के रिश्तों के बारे में आए दिन कुछ न कुछ सुनने को मिल रहा था, अत: वह भी उस पर शक करने लगा था. उस का शक तब और बढ़ गया, जब उस के साथी कर्मचारी ने शराब पीने के दौरान सारी सच्चाई बयां कर दी.

उस ने कहा, “कृष्णकांत, तुम्हारी बीवी बदचलन है. वह तुम्हारे दोस्त दीपक के साथ रंगरेलियां मनाती है. उस पर लगाम कसो वरना वह तुम्हें छोड़ कर उस के साथ भाग जाएगी.”

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