विनोद एक निजी नौन बैंकिंग कंपनी में एजेंट था, इसलिए उस का घर आने का कोई निश्चित समय नहीं था. लेकिन जब भी उसे घर लौटने में देर होती, वह पत्नी सुनीता को फोन कर के बता जरूर देता था.
26 दिसंबर, 2013 को भी विनोद एक परिचित के यहां जाने की बात कह कर घर से निकला था. जब लौटने में उसे देर होने लगी और उस का फोन नहीं आया तो सुनीता ने उसे फोन किया. लेकिन उस का फोन बंद था, इसलिए बात नहीं हो पाई.
विनोद जिस कंपनी का एजेंट था, वह कंपनी आकर्षक ब्याज पर लोगों के पैसे जमा कराती थी. सुनीता ने यह सोच कर दोबारा फोन नहीं मिलाया कि वह किसी ग्राहक के साथ मीटिंग में होगा. जब काफी देर हो गई और न विनोद का फोन आया, न वह खुद आया तो सुनीता ने एक बार फिर फोन मिलाया. इस बार भी उस का फोन बंद था. अब तक रात के 10 बज गए थे. इतनी देर तक विनोद बिना बताए कभी बाहर नहीं रहा था.
यही सोच कर सुनीता को पति की चिंता सताने लगी. जिस आदमी से मिलने की बात कह कर विनोद घर से निकला था, सुनीता उसे जानती थी. वह उस आदमी के घर गई तो पता चला कि विनोद उस के पास आया तो था, लेकिन थोड़ी देर बाद ही चला गया था. उस के यहां से जाने के बाद वह कहां गया, यह उसे पता नहीं था.
सुनीता ने बच्चों को तो खाना खिला कर सुला दिया था, लेकिन पति की वजह से उस ने खुद खाना नहीं खाया था. पति की चिंता में उस की भूखप्यास मर चुकी थी. किसी अनहोनी की आशंका से उस के दिमाग में तरहतरह के विचार आ रहे थे. व्याकुल होने के साथ उस की घबराहट भी बढ़ती जा रही थी. चारपाई पर बैठे हुए उस की निगाहें दरवाजे पर ही टिकी थीं.