थोड़ी देर में रीना बस से बनमौर के लिए निकल चुकी थी. उधर उस का प्रेमी कुणाल वहां उस के इंतजार में था. रीना के बनमौर पहुंचने पर उसे बस स्टैंड पर ही कुणाल बाइक लिए खड़ा मिल गया. उसे देख कर रीना के चेहरे पर चमक आ गई. कुणाल ने सहजता से पूछा, ''कोई परेशानी तो नहीं हुई? किसी ने देखा तो नहीं?’’
रीना ने कुछ बोले बगैर कुणाल को अपना बैग पकड़ा दिया. कुणाल ने उसे अपनी गोद में रख कर दोनों हाथों से बाइक का हैंडल पकड़ कर बोला, ''बैठो, दुपट्टा संभाल लेना.’’
इसी के साथ रीना तुरंत बाइक पर बैठ गई. दोनों ने घर पहुंचने से पहले रास्ते में एक ढाबे पर खाना खाया और फिर कुणाल ने उस रात अपनी हसरतें पूरी कीं. रीना भी कुणाल का साथ पा कर निहाल हो गई. दोनों ने बिनब्याह के सुहागरात मनाई. रीना मध्य प्रदेश के भिंड जिले के इंगुरी गांव के रहने वाले साधारण किसान दशरथ भदौरिया की पत्नी थी. कजरारी आंखों वाली सुंदर पत्नी को पा कर दशरथ बेहद खुश था. रीना की इस खूबसूरती का दीवाना उस के पति दशरथ के अलावा एक और युवक कुणाल पांडे भी था.
वह इंगुरी का नहीं था, लेकिन रीना और दशरथ के पड़ोस में रहने वाले शुक्ला परिवार में उस का अकसर आनाजाना लगा रहता था. एक दिन उस की भी नजर रीना पर पड़ गई. तभी से वह उस का दीवाना हो गया था.
शादीशुदा होने के बावजूद क्यों बहकी रीना
पहली बार में ही दोनों के दिलोदिमाग में खलबली मच गई थी. उन्होंने एकदूसरे के प्रति खिंचाव महसूस किया था. कुणाल कुंवारा था, उस ने कुंवारेपन की कसक के साथ रीना की सुंदरता और कमसिन अदाओं को महसूस किया था. कुणाल के बांकपन और बलिष्ठ देह को देख कर रीना के दिमाग के तार भी झनझना उठे थे. दिल की धड़कनें तेज हो गई थीं. गुदगुदी होने लगी थी. उस से मिलने को बेचैन हो गई थी, जबकि वह 7 साल की ब्याहता थी, 3 बच्चे थे. उस की कुछ हसरतें थीं, जो पूरी नहीं हो रही थीं. वह खुद को खूंटे से बंधी गाय ही समझती थी.