प्यार में नाकाम आसिफ रमजान में आत्महत्या नहीं कर सकता था, इसलिए उस ने भारतपाक सीमा पार करने की सोची ताकि मिलिट्री वाले उसे गोलियों से भून दें. लेकिन...
मोहम्मद आसिफ ने सामने बैठी शबनम की पूरी बात सुनने के बाद एक गहरी सांस ले कर बुझे मन से कहा, ‘‘आखिर वही हुआ जिस का मुझे डर था, आज सारी दुनिया हमारे प्यार की दुश्मन बन बैठी है. जब अपनों ने ही साथ देने से साफ इंकार कर दिया तो किसी दूसरे को क्या दोष दें.’’
‘‘आसिफ मैं अम्मीअब्बू तो क्या, अपनी खाला से भी बात कर चुकी हूं. मुझे भी वही सब जवाब मिले थे, जो तुम्हें अपने परिवार से मिले हैं.’’
फिर कुछ सोचते हुए आसिफ ने कहा, ‘‘शबनम, हमें घर से भाग कर अपनी एक नई दुनिया बनानी होगी.’’
आसिफ की बात बीच में ही काटते हुए शबनम ने कहा, ‘‘यह तुम कैसी बातें कर रहे हो, क्या घर से भागना इतना आसान है? आसिफ मुझे तो ऐसा लग रहा है कि आज यह हमारी आखिरी मुलाकात है. आज के बाद हम कभी नहीं मिल सकेंगे. क्योंकि अगले हफ्ते मेरा निकाह है. इस बीच अगर तुम अपने घर वालों को मना सको तो ठीक है, नहीं तो मुझे भूल जाना और बेवफा कह कर दोषी मत ठहराना. खुदा हाफिज.’’ कह कर शबनम वहां से उठ कर अपने घर की तरफ चली गई. आसिफ काफी देर तक वहीं बैठा सोचता रहा.
मोहम्मद आसिफ पाकिस्तान के जिला कसूर के अंतर्गत आने वाले गांव जल्लोके का रहने वाला था. उस के पिता का नाम था खलील मोहम्मद. खलील मोहम्मद की 4 संतानों में आसिफ सब से छोटा था. उसे छोड़ कर सभी बहनभाइयों की शादी हो चुकी थी. खलील मोहम्मद के पास अपने गुजारे लायक जमीन थी, जिस में घर खर्च बड़े मजे से चलता था. सब कुछ ठीक चल रहा था कि आसिफ की जिंदगी में उस दिन से हलचल शुरू हुई, जिस रोज उस ने पहली बार शबनम को देखा था. मन ही मन आसिफ ने उस की तारीफ की थी. उन की यह मुलाकात एक शादी समारोह में हुई थी. शबनम की एक झलक देखते ही आसिफ अपना दिल हार बैठा था. वह सोचने लगा कि अगर यह खूबसूरत लड़की उस की जिंदगी में आ जाए तो जिंदगी बन जाएगी.