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रचना और नीरज बचपन से ही एकदूसरे को प्यार करते थे. उन का प्यार शारीरिक आकर्षण नहीं बल्कि प्लैटोनिक था, जिस में इसे नादानी और कम उम्र के प्यार का नतीजा कहना रचना और नीरज के साथ ज्यादती ही कहा जाएगा. दरअसल, यह दुखद हादसा सच्चे और निश्छल प्यार का उदाहरण है. जरूरत इस प्यार को समझने और समझाने की है, जिस से फिर कभी प्यार करने वालों की लाशें किसी पेड़ से लटकती हुई न मिलें.

विश्वप्रसिद्ध पर्यटनस्थल खजुराहो से महज 8 किलोमीटर दूर एक गांव है बमीठा, जहां अधिकांशत: पिछड़ी जाति के लोग रहते हैं. खजुराहो आने वाले पर्यटकों का बमीठा में देखा जाना आम बात है, इन में से भी अधिकतर विदेशी ही होते हैं. बमीठा से सटा गांव बाहरपुरा भी पर्यटकों की चहलपहल से अछूता नहीं रहता. लेकिन इस गांव में लोगों पर विदेशियों की आवाजाही का कोई खास प्रभाव नहीं पड़ता, क्योंकि वे इस के आदी हो गए हैं.

भैरो पटेल बाहरपुर के नामी इज्जतदार और खातेपीते किसान हैं. कुछ दिन पहले ही उन्होंने अपनी 18 वर्षीय बेटी रचना की शादी नजदीक के गांव हीरापुर में अपनी बराबरी की हैसियत वाले परिवार में तय कर दी थी. शादी 11 फरवरी को होनी तय हुई थी, इसलिए भैरो पटेल शादी की तारीख तय होने के बाद से ही व्यस्त थे.

गांव में लड़की की शादी अभी भी किसी चुनौती से कम नहीं होती. शादी के हफ्ते भर पहले से ही रस्मोरिवाजों का जो सिलसिला शुरू होता है, वह शादी के हफ्ते भर बाद तक चलता है. ऐसी ही एक रस्म आती है छई माटी, जिस में महिलाएं खेत की मिट्टी खोद कर लाती हैं. बुंदेलखंड इलाके में इस दिन महिलाएं गीत गाती हुई खेत पर जाती हैं और पूजापाठ करती हैं.

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