कविता को ज्यादा देर तक बिस्तर पर पड़ी रहना अच्छा नहीं लगता था, इसलिए वह उठी और चाय बनाने के लिए सीढि़यां उतर कर भूतल पर बनी रसोई में आ गई. रसोई से ही उस ने भूतल पर बने कमरे की ओर देखा तो उस का दरवाजा आधा खुला था. कविता के मन में आया कि वह कमरे का दरवाजा खोल कर देखे कि उस का दूसरा बेटा निक्की, जेठ बनवारीलाल और उन के तीनों बच्चे जाग गए हैं या नहीं?
कविता दरवाजे के पास पहुंची तो उसे कमरे के अंदर से बाहर की ओर खून बहता हुआ दिखाई दिया. खून देख कर कविता परेशान हो गई. उस ने कमरे में झांका तो अंदर जो दिखाई दिया, उस से उस की आंखों के आगे अंधेरा छा गया. कमरे के अंदर बैड पर उस के जेठ बनवारीलाल और एक बच्चा तथा 3 बच्चे जमीन पर लहूलुहान पडे़ थे. उन के शरीर से अभी भी खून रिस रहा था.
कविता अपने बेटे और जेठ समेत उन के तीनों बच्चों को इस हालत में देख कर सन्न रह गई. उस के मुंह से आवाज तक नहीं निकली. वह समझ नहीं पा रही थी कि यह क्या हो गया है?
जेठ और बच्चों को लहूलुहान देख कर चेतनाशून्य हुई कविता पल भर वह चेतनाशून्य हो कर खड़ी यह सब देखती रही. उसे लगा कि वह जमीन पर गिर जाएगी तो उस ने दीवार का सहारा ले कर खुद को संभाला. दीवार का सहारा लेने से उस की चेतना लौटी तो वह जोरजोर से रोने और चिल्लाने लगी.
कविता के रोने और चिल्लाने की आवाज सुन कर ऊपर के कमरे में सो रही जेठानी संतोष भी नीचे आ गई. उस ने भी कमरे के अंदर का नजारा देखा तो फूटफूट कर रोने लगी. उस के पति और 3 बेटों के साथ देवर का भी एक बेटा मरणासन्न हालत में पड़ा था. देवरानी और जेठानी की चीखपुकार सुन कर पड़ोसी भी आ गए. आने वाले लोग भी कमरे के अंदर का दृश्य देख कर रो पड़े.