कानपुर से 40 किलोमीटर दूर बेलाविधूना मार्ग पर एक कस्बा है रसूलाबाद. इसी कस्बे से सटा एक गांव है बादशाहपुर., जहां रहता था रामचंद्र का परिवार. उस के परिवार में पत्नी जमना के अलावा 2 बेटे रघुनंदन उर्फ रघु, शिवनंदन उर्फ शिव तथा 2 बेटियां सपना और सुरेखा थीं. रामचंद्र गांव का संपन्न किसान था. वह गांव का प्रधान भी रह चुका था, इसलिए गांव में लोग उस की इज्जत करते थे.
रामचंद्र की छोटी बेटी सुरेखा दसवीं में पढ़ रही थी, जबकि बड़ी बेटी सपना ने बारहवीं पास कर के पढ़ाई छोड़ दी थी. रामचंद्र उसे पढ़ालिखा कर मास्टर बनाना चाहता था. लेकिन सपना के पढ़ाई छोड़ देने से उस का यह सपना पूरा नहीं हो सका. पढ़ाई छोड़ कर वह घर के कामों में मां की मदद करने लगी थी.
गांव के हिसाब से सपना कुछ ज्यादा ही सुंदर थी. जवानी में कदम रखा तो उस की सुंदरता में और निखार आ गया. गोरा रंग, बड़ीबड़ी आंखें, तीखे नाकनक्श, गुलाबी होंठ और कंधों तक लहराते बाल हर किसी को अपनी ओर आकर्षित कर लेते थे. अपनी इस खूबसूरती पर सपना को भी बहुत नाज था.
यही वजह थी कि जब कोई लड़का उसे चाहत भरी नजरों से देखता तो वह इस तरह घूरती मानो खा जाएगी. उस की इन खा जाने वाली नजरों से ही लड़के उस से डर जाते थे. लेकिन रामनिवास सपना की इन नजरों से जरा भी नहीं डरा था. वह सपना के घर से कुछ ही दूरी पर रहता था. उस के पिता शिव सिंह की मौत हो चुकी थी. वह मां और भाइयों अनिल तथा रावेंद्र के साथ रहता था.