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रशीद के साथ नरगिस की मुलाकात तब हुई जब वह अपनी एक पड़ोसन के लिए संदूक खरीदने उस की दुकान पर गई थी. रशीद को अचानक नरगिस अच्छी लगने लगी थी. वह उस से बात करना चाहता था पर उस दिन साथ में दूसरी औरत होने की वजह से बात नहीं कर सका. लेकिन बातचीत कर के उसे पता लग गया था कि वह फिरोजाबाद के रामगढ़ थाने के पास की गली में रहती है.

नरगिस को देखने के बाद रशीद के दिल में खलबली मच गई थी. वह उस से मिलना चाहता था, इसलिए एक दिन वह दुकान बंद कर के थाना रामगढ़ के नजदीक पहुंच कर आसपास के लोगों से नरगिस के बारे में पूछने लगा. लेकिन कोई उसे कुछ नहीं बता पाया. फिर अचानक उसे गली की नुक्कड़ पर नरगिस मिल गई.

नरगिस ने उसे देखा तो कहा, ‘‘अरे, तुम यहां कैसे?’’

‘‘अपने किसी दोस्त से मिलने आया था.’’ रशीद ने बहाना बनाया.

नरगिस ने उसे अपने घर चलने को कहा तो वह उस के साथ चल दिया.

नरगिस के घर पहुंच कर रशीद ने उस के हालात का जायजा लिया. उस के प्रति सहानुभूति दिखाई तो नरगिस के दिल में रुका हुआ लावा भी फूट पड़ा. उस ने बताया कि शौहर की मौत के बाद जिंदगी बहुत मुश्किल हो गई है. रशीद ने महसूस किया कि नरगिस को भी किसी मर्द के सान्निध्य की जरूरत है. इसी का उस ने फायदा उठाने का फैसला लिया. पर नरगिस का दिल टटोलना भी जरूरी था, लिहाजा उस दिन वह कुछ ही देर में फिर से मिलने का वादा कर के चला आया. उस ने नरगिस को अपना मोबाइल नंबर दे दिया और कहा जब भी किसी चीज की जरूरत हो, वह उस से बेझिझक कह सकती है.

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