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इसलामनगर से करीब 30 किलोमीटर की दूरी पर दहगवां एक विकसित गांव है, जो कस्बे का रूप ले चुका है. दहगवां बदायूं जिले के ही थाना जरीफनगर के अंतर्गत आता है. इसे नगर पंचायत का दरजा मिल चुका है. पहली बार वहां चेयरमैन चुना जाना है. दहगवां से करीब 7 किलोमीटर दूर गांव परड़या है.

यहीं शबनम का भरापूरा परिवार रहता है. संभ्रांत लोगों में उन की गिनती होती है.

शबनम की शादी के बाद से ही उस के परिजन परेशान रहने लगे थे. आए दिन शबनम का पति और ससुरलवालों से झगड़े निपटाए जाते थे. शबनम की जिद के चलते शरीफ को 4 साल दहगवां में किराए का मकान ले कर रहना पड़ा था. तब लोग उन पर काफी तंज कसा करते थे.

शरीफ ने एक दिन शबनम को घर ला कर समझाने की कोशिश की. शरीफ और उस के घर वालों ने उसे काफी समझाया. यहां तक कि पंचायत हुई, लेकिन पंचायत में भी कोई खास समाधान नहीं निकल पाया.

आखिरकार, शरीफ शबनम को उस के मायके में ही छोड़ कर दिल्ली चला गया. कुछ दिन बाद शबनम बच्चे को ले कर अपनी ससुराल इसलामनगर पहुंची और ताला तोड़ कर रहने लगी. तब शबनम ने शरीफ से फोन पर माफी मांगते हुए नए सिरे से जिंदगी शुरू करने की बात कही. साथ ही वादा किया कि वह आइंदा सलीम से कोई संबंध नहीं रखेगी.

पत्नी की बात सुन कर शरीफ ने उसे माफ तो कर दिया, साथ ही बच्चों के भविष्य के लिए सही रास्ते पर चलने को कहा. शबनम ने भी वादा करते हुए कहा कि ऐसा ही होगा. वह पुरानी बातों को दिमाग से निकाल दे और हम लोग मेहनत कर अधूरे मकान को पूरा करेंगे. पत्नी की बात पर यकीन करने के अलावा शरीफ के पास और कोई रास्ता भी नहीं था.

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